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ऐ दिले - मर्ग - आशना खत का जवाब सुन लिया? और तू बेकरार हो! और तू इंतजार कर !
- बैठे हैं, बड़ी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि प्रेयसी का पत्र आता होगा।
ऐ दिले - मर्ग- आशना !
हुए
दिल ।
ऐ दिले - मर्ग - आशनां खत का जवाब सुन लिया? और तू बेकरार हो! और तू इंतजार कर!
ऐ प्रेयसी पर मिटे
अब जागो, बहुत हो चुका इंतजार देखो, खेल लो। इसमें भटक मत जाओ। इसको अति
यहां कुछ मिलने को है नहीं। खेल है, खेल की तरह गंभीरता से मत लो।
और तुम तो ऐसे पागल हो कि फिल्म देखने जाते हो, उसी को गंभीरता से ले लेते हो। देखा, फिल्म में किसी की हत्या हो जाती है, अनेक आहें निकल जाती हैं! पागल हो गए हो? कुछ तो होश रखो! लोगों के रूमाल अगर तुम फिल्म के बाद पकड़ कर एक-एक के देखो तो गीले पाओगे। आंसू बह जाते हैं, पोंछ लेते हैं अपने आंसू जल्दी से, रूमाल छिपा लेते हैं। अच्छा है वह तो अंधेरा रहता है सिनेमागृह में, तो कोई देख नहीं पाता। पत्नी भी बगल में रो रही है, पति भी रो रहे हैं। दोनों पोंछ कर अपना...। मगर दोनों को यह समझ में नहीं आ रहा कि पर्दे पर कुछ भी नहीं है । धूप-छांव! लेकिन वह भी प्रभावित कर जाती है। उससे भी तुम बड़े आंदोलित हो जाते हो। प्रतीक प्रभावित कर जाते हैं। शब्द प्रभावित कर जाते हैं।
तो स्वाभाविक है कि यह जीवन जो चारों तरफ फैला है, इतना विराट मंच, इसमें अगर तुम भटक जाओ तो कुछ आश्चर्य नहीं! तुम होश में नहीं हो, तुम मूर्च्छित हो।
'जिंदगी देने वाले सुन
तेरी दुनिया से जी भर गया
मेरा जीना यहां मुश्किल हो गया। '
मुश्किल? इसका मतलब है कि अभी भी अपेक्षा बनी है; नहीं तो क्या मुश्किल है? मुश्किल का मतलब है. अभी भी तुम चाहते हो कुछ सुविधा हो जाती कुछ सफलता मिल जाती, कुछ तो राहंत दे देते। एकदम हार ही हार तो मत दिलाए चले जाओ। कुछ बहाना तो, कुछ निमित्त तो रहे जीने का। 'रात कटती नहीं, दिन गुजरता नहीं
जख्म ऐसा दिया, जो भरता नहीं। '
फिर से गौर से देखो। क्योंकि जानने वालों ने तो कहा कि जगत माया है, इससे जख्म तो हो ही नहीं सकता। यह तो ऐसा ही है - अष्टावक्र बार-बार कहते हैं- जैसे रज्जू में सर्प । जैसे कोई आद अंधेरे में देख कर रस्सी और भाग खड़ा हो कि सांप है; भागने में पसीना-पसीना हो जाए, छाती धड़कने लगे, हृदय का दौरा पड़ने लगे और कोई दीया ले आए और कहे कि पागल, जरा देख भी तो, वहां कुछ भाग को है, न कुछ भयभीत होने को है! रस्सी पड़ी है।