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गम का सामान है
जिंदगी देने वाले सुन! तेरी दुनिया से जी भर गया ।
अगर जी सचमुच भर गया है, अगर सच में ही दुनिया से जी भर गया है तो उसका परिणाम उदासी नहीं है। उसका परिणाम निराशा भी नहीं है। उसका परिणाम तो एक अपूर्व उत्कुल्लता का जन्म है। जिसका जीवन से जी भर गया-अर्थ हुआ कि उसने जान लिया कि जीवन व्यर्थ है। अब कैसी निराशा? निराशा के लिए तो आशा चाहिए। इसे समझने की कोशिश करो।
जब तक तुम्हारे जीवन में आशा है कि कुछ मिलेगा जिंदगी से, कुछ मिलेगा तब तक जिंदगी तुम्हें निराश करेगी, क्योंकि मिलने वाला कुछ भी नहीं है। जिस दिन तुम्हारी आशा छूट गई, उसी दिन निराशा भी छूट गई। लोग सोचते हैं : जब आशा छूट जाएगी तो हम बिलकुल निराश हो जाएंगे। आशा छूट गई, फिर तो निराश होने का उपाय ही नहीं। क्योंकि आशा, निराशा साथ ही विदा हो जाते हैं। आशा की छाया है निराशा । जितनी तुम आशा करोगे उतनी निराशा पलेगी। उतने ही तुम हारोगे । जीतना चाहा तो ही हार सकते हो।
लाओत्सु कहता है. मुझे कोई हरा नहीं सकता क्योंकि मैं जीतना चाहता ही नहीं । कैसे हराओगे उस आदमी को जो जीतना चाहता ही नहीं। लाओत्सु कहता है मैं हारा ही हुआ हूं मुझे तुम हराओगे कैसे?
जिस आदमी को जीतने की आकांक्षा है, वह हारेगा और जितनी ज्यादा आकांक्षा है, उतना ज्यादा हारेगा। जो आदमी धनी होना चाहता है वह निर्धन रहेगा और जितना ज्यादा धनी होना चाहता है उतना निर्धन रहेगा। क्योंकि उसकी धन की अपेक्षा कभी भी भर नहीं सकती । जितना मिलेगा वह छोटा मालूम पड़ेगा, ओछा मालूम पड़ेगा । उसकी आकांक्षा का पात्र तो बड़ा है। उस पात्र में सभी जो मिलेगा, खो जाएगा।
इस सूत्र को खयाल में लेना : तुम्हारी आशा निराशा की जन्मदात्री है। तुम्हारी आकांक्षा तुम्हारी विफलता का सूत्र - आधार है। तुम्हारी मांग तुम्हारे जीवन का विषाद है।
अगर सच में ही जीवन से जी भर गया..। लगता नहीं।
'जिंदगी देने वाले सुन
तेरी दुनिया से जी भर गया । '
अभी भरा नहीं। थक गए होओगे। आशाएं पूरी नहीं हुईं लेकिन आशाएं समाप्त नहीं हो गई हैं। जिसको तुम जीवन से जी भर जाना कहते हो, वह विषाद की अवस्था है। तुम जो चाहते थे वह नहीं हुआ, इसलिए ऊब गए हो। लेकिन अगर अभी परमात्मा कहे कि हो सकता है, तुम फिर दौड़