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दो ही बातें हैं जो संसार के भोग से जागे हुए आदमी को पकड़ सकती हैं. एक त्याग और एक ज्ञान| त्याग कि छोड़ो; तपश्चर्या में उतरो, उपवास करो, नींद त्यागो, इसको छोड़ो उसको छोड़ो; और ज्ञान. ऐसा जानो, वैसा जानो, और जानने को मजबत करो।
दो तरह के लोग हैं संसार में. जो बहुत सक्रिय प्रवृति के लोग हैं वे तो संसार से छूटते ही त्याग में लग जाते हैं। जो थोड़ी निष्किय प्रवृति के लोग हैं, विचारक वृत्ति के लोग हैं, वे संसार से छूटते ही ज्ञान में लग जाते हैं। मगर दोनों ही अड़चनें हैं।
तुम अक्सर पाओगे. या तो संसार से भागा हुआ आदमी पंडित हो जाता है, शास्त्र दोहराने लगता; या शरीर को गलाने लगता, सताने लगता। दोनों ही अवरोध हैं। न तो यहां कुछ जानने को है न यहां कुछ करने को है। ज्ञाता तुम्हारे भीतर छुपा है, जानना क्या है? जानने वाला तुम्हारे भीतर बैठा है, सबको जानने वाला तुम्हारे भीतर बैठा है। जानना क्या है गु:
ये अध्यात्म के आत्यंतिक उदघोष हैं। इसलिए तुम्हें कठिन भी मालूम पड़े तो भी समझने की कोशिश करना।
'दुख और सुख जिसके लिए समान हैं, जो पूर्ण है, जो आशा और निराशा में समान है, जीवन और मृत्यु में समान है; ऐसा हो कर तू निर्वाण को प्राप्त हो।'
समदुःखसुखः पूर्ण आशानैराश्ययो समः। सुख-दुख जिसे समान दिखाई पड़े, आशा-निराशा जिसे समान दिखाई पड़े-यही तो वैराग्य की परिभाषा है।
समजीवितमृत्कृ! -मृत्यू और जीवन भी जिसे समान मालूम पड़े।
सत्रैवमेव लय व्रज। -ऐसा जान कर तू निर्वाण को प्राप्त कर ले जनक।
फिर एक लक्ष्य दे रहे उसे। या तो त्याग दे देहाभिमान और या 'मैं स्वयं परमब्रह्म हूं आत्मा हूं आत्मा सर्व से एक है-ऐसे ज्ञान को पकड़ ले। ये दो रास्ते हैं तेरे मुक्त हो जाने के।
अगर कोई भी साधारण साधक होता तो उलझ गया होता। अगर सक्रिय व्यक्ति होता तो कर्मयोग में पड़ जाता। अगर निष्किय व्यक्ति होता तो ज्ञानयोग में पड़ जाता।
भक्ति की बात अष्टावक्र ने नहीं उठाई, क्योंकि जनक में उसकी कोई संभावना नहीं थी। ये दो संभावनाएं थीं। क्षत्रिय था जनक, तो सक्रिय होने की संभावना थी। बीज-रूप से योद्धा था, तो सक्रिय होने की संभावना थी। इसीलिए तो जैनों के सारे तीर्थंकर, चूंकि क्षत्रिय थे, गहन त्याग में पड़ गए। तो एक तो संभावना थी कि जनक महात्यागी हो जाए। और एक संभावना थी क्योंकि सम्राट था, सुशिक्षित था, सुसंस्कृत था उस जगत का, उस जमाने का जो भी शुद्धतम ज्ञान संभव था वह जनक को उपलब्ध हुआ था दूसरी संभावना थी, बड़ा विचारक हो जाए। भक्ति की कोई संभावना न दिखाई पड़ी होगी, इसलिए अष्टावक्र ने वह कोई सवाल नहीं उठाया। ये दो सवाल उठाए। ये दो अचेतन में