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________________ फिर भी मैं खाके - रहे - साहिदे - नजरा हूं दोस्त । - फिर भी मैं पारखियों के मार्ग की धूल हूं। बस वही बात मूल्यवान है। 'दिनेश' के भीतर पारखी का जन्म हो रहा है। आकांक्षा पैदा हो रही है-आकांक्षा के पार जाने की। पूरब के क्षितिज पर सूरज की पहली किरणों की लाली प्रगट होने लगी । नहीं, तुम्हारे अतीत से, तुम्हारे माजी से मुझे कुछ लेना-देना नहीं | तुम सपने देखे हैं अब तक, अब जागने की पहली झलक आ रही है। नींद टूटने के करीब है - वही मूल्यवान है। तुम सम्राट थे कि दरिद्र, तुम साधु थे कि असाधु कि तुमने अब तक पुण्यों का अंबार लगा लिया था कि पापों के संग्रह कर लिए थे सब बात व्यर्थ है। वह सब तुमने नींद - नींद में किया था, वे सब सपने थे। अब सपना टूटने की घड़ी करीब आ रही है। ध्यान के प्रति प्रेम पैदा हुआ है, वही बात महत्वपूर्ण है। और 'दिनेश' की तैयारी है मिटने की - वही बात महत्वपूर्ण है। जो मिटने को तैयार है, वह अतीत से मुक्त हो जाएगा। क्योंकि तुम हो ही अतीत का संग्रह । हम जो निरंतर कहते हैं यहां कि अहंकार छोड़ दो, तो उसका मतलब सिर्फ इतना ही होता है कि तुम अब तक जो अतीत ने तुम्हें बनाया है उसे विस्मृत करो, उससे अपने को विच्छिन्न कर लो, ताकि ताजे के लिए घटने के लिए जगह बन सके। बावरे, अहेरी रे! कुछ भी अवध्य नहीं तुझे, सब आखेट है। एक बस मेरे मन- विवर में, दुबकी कलोंच को, दुबकी ही छोड़ कर, क्या तू चला जाएगा? मैं खोल देता हूं कपाट सारे मेरे इस खंडहर की शिरा-शिरा छेद दे आलोक की अनि से अपनी | गढ़ सारा ढाह कर दूह भर कर दे, विफल दिनों की तू कलोंच पर मान जा मेरी आंखें आज जा कि तुझे देखूं देखूं और मन में, कृतज्ञता उमड़ आए पहनूँ सिरोपे से, ये कनक तार तेरे बावरे, अहेरी ! 'दिनेश' की प्रार्थना मुझे सुनाई पड़ रही है. मैं खोल देता हूं कपाट सारे
SR No.032110
Book TitleAshtavakra Mahagita Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year
Total Pages407
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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