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मेरे इस खंडहर की शिरा-शिरा छेद दे
आलोक की अनि से अपनी! और वही शुभ घड़ी है, वही भाग्योदय है, जब तुम किसी के पास जा कर कह सकी, मिटा दो मुझे। गढ़ सारा डाह कर, दूह भर कर दे
विफल दिनों की तू कलोंच पर मान जा
मेरी आंखें आज जा! ध्यान यानी आंखों का आंजना है। ध्यान यानी आंखों को ताजा करना है, नया करना है, अतीत की धूल झाडूना है!
'मेरे माजी के तल्स अंधेरों में
बता 'रजनीश' क्या देखा तूने?' नहीं, तुम्हारे अतीत की मैं चिंता ही नहीं करता। जो गया, गया। जो बीता सो बीता।
'गर्दिश-ए-अथ्याम में था उलझा
या बाहर उलझनों से आते देखा?' ' नहीं, अभी आए नहीं बाहर। लेकिन बाहर आने की पहली आकांक्षा उठी। और पहली आकांक्षा का उठ आना आधी यात्रा का पूरा हो जाना है।
ले मैं खोल देता हूं कपाट सारे मेरे इस खंडहर की शिरा-शिरा छेद दे
आलोक की अनि से अपनी। इधर मैं प्रकाश लिए बैठा हूं, तुम अगर तैयार हो हृदय को खोल देने को, तो मृत्यु घटेगी और तुम्हारा नया जन्म भी होगा। सूली भी लगेगी और तुम्हारा पुनर्जन्म भी होगा।
पर मिटने की तैयारी चाहिए, पूरी-पूरी मिटने की तैयारी चाहिए! वही संन्यास है. अतीत से अपने को विच्छिन्न कर लेना; अतीत की भूमि से अपनी जड़ों को बिलकुल उखाड़ लेना। नई भूमि की तलाश है संन्यास। जैसे अब तक जो था व्यर्थ था; जो हुआ हुआ नहीं हुआ नहीं हुआ अब हम उससे सब संबंध छोड़ लेते हैं; अब आगे उसका कोई हिसाब न रखेंगे, और अब पीछे लौट-लौट कर न देखेंगे। गढ सारा ढाह कर, दूह भर कर दे
विफल दिनों की तू कलोंच पर मान जा मेरी आंखें आज जा।
मैं तैयार हूं! अगर तुम तैयार हो, तो मैं तैयार हूं तुम्हारी आंखें आजने को। थोडी तकलीफ भी होती है जब आंखें आजी जाती हैं। आंसू भी बहते हैं, आंख बंद कर लेने का भी मन होता है। वह सब स्वाभाविक है। लेकिन अगर साहस हो तो परमात्मा सुनिश्चित घट सकता है।