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नहीं है। अब तुम अपने स्वामी हो। यह तुम्हारा स्वामित्व है।
इस घोषणा के साथ ही सत्य की यात्रा शुरू होती है। और इस घोषणा को जिस दिन तुम पूरा-पूरा
अनुभव कर लोगे, उस दिन आ गई मंजिल, उस दिन आ गया अपना घर ।
सिखलाका वह ऋत् एक ही अनल है, जिंदगी नहीं वहां, जहां नहीं हलचल है। जिनमें दाहकता नहीं, न तो गर्जन है, सुख की तरंग का जहां अंध वर्जन है। जो सत्य राख में सने रुक्ष रूठे हैं, छोड़ो उनको, वे सही नहीं, झूठे हैं। जो सत्य राख में सने रुक्ष रूठे हैं।
छोड़ो उनको, वे सही नहीं, झूठे हैं।
जीवंत सत्य तो तुम्हारे भीतर पैदा होगा। बाहर से तुम जो भी ले आए हो, सब कूड़ा-कर्कट है; किसी और से इकट्ठा कर लिया है, सब उधार और बासा और व्यर्थ है। आग लगा दो उस सब में । वे सब सत्य राख में सने हैं।
तुम्हारा सत्य तुम्हारे भीतर पैदा होगा। तुम्हारे सत्य के लिए तुम्हें ही प्रसव पीड़ा से गुजरना होगा। तुम्हारा सत्य तुम्हारे भीतर जन्मेगा। तुम्हें उस सत्य के लिए गर्भ बनना होगा और प्रसव पीड़ा से गुजरना होगा।
खयाल किया तुमने? कोई स्त्री को बच्चा पैदा नहीं होता, वह किसी के बच्चे को गोद ले लेती है। ऐसे मन समझाना हो जाता है।
मैं तुमसे कहता हूं. सत्यों को गोद मत लेना। यह तो बड़ी झूठ हो जाएगी। और हम सबने सत्य गोद ले लिए हैं। कोई हिंदू बना बैठा है, कोई ईसाई, कोई मुसलमान, कोई जैन। हमने सब सत्य उधार ले लिए हैं।
नानक का सत्य है; तुम सिक्ख बने बैठे हो, यह सत्य तुम्हारा नहीं है। नानक ने इसके लिए पीड़ा सही, नानक ने गर्भ धारण किया - इस सत्य को जन्म दिया। तुम मुक्त लिए बैठे हो। तुमने इसके लिए कुछ भी नहीं किया। न तुम आग में गए, न तुम जले, न तुम भटके, न तुम गिरे-तुम्हें यह मुक्त मिला। पीड़ा निखारती है। मुफ्त मिलने से कुछ भी निखार नहीं आता ।
गोद मत लेना सत्यों को - जन्माना। और जब तुम जन्माने में समर्थ हो पाओगे, तभी तुम्हारे भीतर वह तरंग उठेगी निजता की, व्यक्तिगत की। तुम अद्वितीय बनोगे । अद्वितीयता धर्म का आखिरी फल है।
और यह भी मैं जानता हूं कि अचानक आज तुम पूरे सत्य को न पा सकोगे। इंच-इंच चलना होगा, घिसटना होगा - और चढ़ाई बड़ी है और पहाड़ ऊंचा है, और सांस घुटेगी, और सब बोझ छोड़ देना होगा; क्योंकि जरा भी बोझ नहीं ले जाया जा सकता। जैसे-जैसे पहाड़ पर कोई चढ़ने लगता