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है, वैसे-वैसे बोझ कम करना पड़ता है। जब हिलेरी एवरेस्ट पर पहुंचा, उसके पास कुछ भी नहीं था। पानी की बोतल भी थोड़े पीछे उसे छोड़ देनी पड़ी, क्योंकि उतना बोझ ढोना भी मुश्किल हो गया। जितनी ऊंचाई होती है उतना बोझ मुश्किल हो जाता है। सब सामान ले कर आया था, वे धीरे - धीरे सब छूट गए; धीरे- धीरे सब डालता गया, राह के किनारे रखता गया, क्योंकि उनका खींचना मुश्किल होने लगा था। जब पहुंचा तो अकेला था, खाली था।
और जिस गौरीशंकर की चढ़ाई की मैं तुमसे बात कर रहा हूं वह तो आखिरी ऊंचाई है अस्तित्व की। वह आज न घट जाएगी। इंच-इंच जलना और तपना होगा। धीरे- धीरे तुम छोड़ पाओगे। मगर छोड़ने का खयाल रहे।
बांसों - बांस उछलती लहरें ।
देख लिया है चांद सलोना, लेकिन हाथ रह गया बौना । रह-रहकर कर मलती लहरें, बांसों - बांस उछलती लहरें ।
शीतलता कैसी बिखरा दी, पानी में ही आग लगा दी। बुझती और सुलगती लहरें, बांसों - बांस उछलती लहरें ।
स्वप्न - लोक के यात्रा - पथ पर, भावुकता रचा स्वयंवर,
असफल हो सिर हरनती लहरें, बांसों
बांस उछलती लहरें ।
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चांद तो दिखाई पड़ने लगता है उपदेश से, तुम बांसों - बांस उछलने लगते हो। मगर इतने से चांद मिल न जाएगा । उपदेश से चांद नहीं मिलेगा, उपदेश से चांद दिखेगा। मिलेगा तो तुम्हारे अपने जीवन को एक अनुशासन और आदेश देने से।
वह जो मैंने कहा कि तुम उपदेश सब से ले लेना, आदेश स्वयं देना - उसका इतना ही अर्थ है। महावीर, बुद्ध, कृष्ण, क्राइस्ट, नानक, कबीर, उनके पास तुम्हें पहली दफे चांद की स्मृति आएगी कि चांद है। पहली दफे तुम्हारी जमीन में गड़ी आंखें ऊपर उठेंगी और आकाश को देखेंगी। तुम उछलोगे