________________
एयं च उत्तकाले, सयं च मण वयण तणूहिं पालणिय; जाणग- जाणग पास त्ति भंग चउगे तिसु अणुन्ना ॥ ४३ ॥
इन (पौरुषी आदि) प्रत्याख्यानों को उनके कहे हुए ( एक प्रहर इत्यादि) काल तक स्वयं मन वचन काया से परिपालन करे (लेकिन भांगे नही) तथा प्रत्या० के जानकार और अजानकार के पास से प्रत्याख्यान लेने- देने के चार विकल्पो में तीन विकल्प के विषय में प्रत्याख्यान करने की आज्ञा है | ॥४३॥
फासिय पालिय सोहिय, तीरिय किट्टिय आराहिअ छ सुद्धं; पच्चक्खाणं फासिय, विहिणोचिय- कालि जं पत्तं ॥ ४४ ॥ स्पर्शित - पालित - शोधित तीरित कीर्तित और
I
आराधित (ये छ प्रकार की) शुद्धि है । विधि पूर्वक उचित समय में (सूर्योदय से पूर्व ) यदि प्रत्याख्यान किया हो ( लिया हो वह स्पर्शित प्रत्याख्यान कहलाता है | ॥४४॥ पालिय पुण पुण सरियं, सोहिय गुरुदत्त सेस भोयणओ; तीरिय समहिय काला, किट्टिय भोयण समय सरणा ॥४५॥
-
-
किये हुए प्रत्याख्यान का वारंवार स्मरण किया हो तो वह पालित प्रत्या० कहलाता है । तथा गुरु को देने के बाद शेष बचा हुआ भोजन करने से शोधित अथवा शोभित
५६
भाष्यत्रयम्