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(शुद्ध किया या सुशोभित किया) प्रत्या० कहलाता है । तथा (प्रत्या० का तो काल दर्शाया है उस काल से भी) अधिक काल करने से (प्रत्या० देरी से पारने से ) तीरित (तीर्यु) प्रत्या० कहलाता है । किये हुए प्रत्याख्यान को भोजन के समय स्मरण करने से कीर्तित (कीर्त्य) प्रत्याख्यान कहा जाता है ॥४५॥
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इअ पडिअरिअं आराहियं तु अहवा छ सुद्धि सद्दहणा; जाणविण - भासण, अणुपालण भावसुद्धित्ति ॥ ४६ ॥
इस प्रकार पूर्वोक्त की रीत से आचरण किया हुआ (= संपूर्ण किया हुआ) प्रत्याख्यान वह आराध (आराधा हुआ) पच्च० कहलाता है, अथवा दूसरी रीत से भी ६ प्रकार की शुद्धि है, वो इस प्रकार, श्रद्धा शुद्धि जाणशुद्धि (ज्ञान शुद्धि) - विनय शुद्धि - अनुभाषणशुद्धि - अनुपालन शुद्धि और भाव शुद्धि ये ६ शुद्धि है | ॥४६॥
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पच्चक्खाणस्स फलं, इह परलोए य होइ दुविहं तु; इहलोए धम्मिलाइ दामन्नग माइ परलोए ॥ ४७ ॥
इस लोक का फल और परलोक का फल इस प्रकार प्रत्याख्यान का फल दो प्रकार है । इस लोक में धम्मिलकुमार विगेरे को शुभफल प्राप्त हुआ, और परलोक में दामन्नक विगेरे को शुभ फल प्राप्त हुआ | ॥४७||
श्री पच्चक्खाण भाष्य
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