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चउरो थुइ निमित्तट्ठ, बार हेउ अ सोल आगारा; गुणवीस दोस उस्सग्ग, माण थुत्तं च सगवेला ॥ ४ ॥ __ चार स्तुतियाँ, आठ निमित्त, बारह हेतु, सोलह आगार, उन्नीस दोष, काउस्सग्ग का प्रमाण, स्तवन, सात वार ॥४॥ दस आसायण-चाओ, सव्वे चिईवंदणाइ ठाणाइं; चउवीस दुवारेहि, दुसहस्सा हुति चउसयरा ॥ ५ ॥
दस आशातनाओं का त्याग, चौवीस द्वारों को लेकर चैत्यवंदन के सर्व स्थान दो हजार चुम्मोत्तर (२०७४) होते है ॥५॥ तिनि निसीही तिनि उ, पयाहिणा तिनि चेव य पणामा; तिविहा पूया य तहा, अवत्थ-तिय-भावणं चेव ॥ ६ ॥
तीन निसीहि, तीन प्रदक्षिणा, तीन प्रणाम, तीन प्रकार की पूजा (और) तीन अवस्थाओं का चिंतन करना ॥६॥ तिदिसि निरिक्खण-विरइ,पयभूमि-पमज्जणं च तिक्खुत्तो; वन्नाइ-तियं मुद्दा, तियें - च तिविहं च पणिहाणं ॥ ७ ॥
तीन तरफ की दिशाओं में देखना नहीं, तीन बार पैर की जमीन की प्रमार्जना करना,. वर्णादिक तीन, तीन मुद्राएँ, और तीन प्रकार के प्रणिधान ॥७॥ घर-जिणहर-जिणपूआ, वावारच्चायओ निसीहि-तिगं; अग्ग-दारे मज्झे, तइया चिइ-वंदणा-समए ॥ ८ ॥
भाष्यत्रयम्