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मुख्यद्वार पर, मध्यमें और तीसरी चैत्यवंदन के समय (अनुक्रम से) घर, जिनमंदिर और जिनपूजा की (द्रव्य) प्रवृत्ति के त्याग को लेकर तीन प्रकार की निसीहि होती है ॥८॥ अंजलिबद्धो अद्धो-णओ अ पंचंगओ अति पणामा; सव्वत्थ वा तिवारं सिराइ-नमणे पणाम-तियं ॥ ९ ॥
अंजलि पूर्वक प्रणाम, अर्धावनत प्रणाम और पंचांग प्रणाम ये तीन प्रणाम है अथवा (भूमि आदि सभी स्थानों में) तीन बार मस्तक आदि झुकाने से भी तीन प्रकार के प्रणाम होते है ॥९॥ अंगग्गभाव-भेया, पुष्फाहारथुइहिं पूयतिगं; पंचुवयारा अट्ठो-वयार सव्वोवयारा वा ॥ १० ॥
अंग अग्र और भाव के भेद से पुष्प आहार और स्तुति द्वारा तीन प्रकार की पूजा, अथवा पंचोपचारी अष्टोपचारी सर्वोपचारी पूजा ये (तीन पूजा) है ॥१०॥ भाविज्ज अवत्थतियं, पिंडत्थ पयत्थ रूव-रहियत्तं; छउमत्थ केवलित्तं, सिद्धत्तं चेव तस्सत्थो ॥ ११ ॥
पिंडस्थ, पदस्थ और रूपरहित अवस्था इन तीन अवस्थाओं का चिन्तन करना । और छद्मस्थ, केवलि और सिद्ध अवस्था उसका (अनुक्रमसे) अर्थ है ॥११॥ श्री चैत्यवंदन भाष्य
उसका