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श्री चैत्यवंदन भाष्य
वंदित्तु वंदणिज्जे, सव्वे चिईवंदणाइ सुवियार; बहु वित्ति - भास - चुणी, सुयाणुसारेण वच्छामि ॥ १ ॥
वंदन करने योग्य सर्वज्ञो को वंदन करके, अनेक टीका भाष्य चुर्पिण और आगम के अनुसार, चैत्यवंदन आदि का (सुविचार) व्यवस्थित विचार कहता हूं ॥१॥ दहतिग-अहिगम पणगं, दुदिसि - तिहुग्गह- तिहा उ वंदणया; पणिवाय-नमुक्कारा, वन्ना सोल-सय-सीयाला ॥ २ ॥
दशत्रिक, पांच अभिगम, दो दिशाएँ, तीन प्रकार के अवग्रह, तीन प्रकार के वंदन, प्रणिपात, नमस्कार, सोलह सौ
सुडतालीश अक्षर ॥२॥
इगसीई सयं तु पया, सगनउई संपयाड पण दंडा; बार अहिगार च वंदिणिज्ज, सरणिज्ज चउह जिणा ॥ ३ ॥ एकसो एक्यासी पद, सत्तानवें संपदाएँ, पांच दंडक, बारह अधिकार, चार वंदन करने योग्य, एक स्मरण करने योग्य, चार प्रकार के जिनेश्वर भगवंत ॥३॥
श्री चैत्यवंदन भाष्य
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