________________
शक्रस्तव, चैत्यस्तव, नामस्तव, श्रुतस्तव, और सिद्धस्तव ये पांच दंडक है । (उनमें) अनुक्रमसे २-१-२-२-५ इस तरह अधिकार हैं ॥४१॥ नमु जेअ अ अरिहं लोग सव्व पुक्ख तम सिद्ध जो देवा; उज्जि चत्ता वेआ, वच्चग अहिगार पढमपया ॥ ४२ ॥
१. नमुत्थुणं २. जेय(अ)अइया सिद्धा, ३. अरिहंत चेइयाणं ४. लोगस्स उज्जोअगरे ५. सव्वलोए अरिहंत-चेइयाणं ६. पुक्खरवरदीवड्ढे ७. तमतिमिर पडलविद्धं ८. सिद्धाणं बुद्धाणं ९. जो देवाणवि देवो १०. उज्जित सेलसिहरे ११. चत्तारिअट्ठ दस दो १२. वेयावच्चगराणं ये बारह अधिकार के १२ प्रथमपद है ॥४२॥ पढम-हिगारे वंदे, भावजिणे बीयए उ दव्वजिणे; इगचेइय-ठवण जिणे, तइय चउत्थंमि नामजिणे ॥४३॥
प्रथम अधिकार में भावजिनको, दूसरे अधिकारमें द्रव्यजिनको, तीसरे अधिकार में एक चैत्य के स्थापना जिनको,
और चौथे अधिकार में नाम जिनको वंदना करता हूं ॥४३॥ तिहुअण-ठवण जिणे पुण, पंचमए विहरमाण जिण छ8; सत्तमए सुयनाणं, अट्ठमए सव्व-सिद्धथुइ ॥ ४४ ॥ तित्थाहिव-वीरथुइ, नवमे दसमे य उज्जयंत थुइ; अट्ठावयाइ इगदिसि, सुदिट्ठिसुर-समरणा चरिमे ॥ ४५ ॥
१४
भाष्यत्रयम्