________________
अभ्युपगम, निमित्त, हेतु, एक और बहुवचनान्त आगार आगंतुग आगार, कायोत्सर्ग की अवधि, और स्वरूप इस प्रकार आठ (संपदाएँ ) है ||३८||
नामथयाइसु संपय, पयसम अडवीस सोल वीस कमा; अदुरुत्त - वन्न दोस, दुसयसोल - इनउअसयं ॥ ३९ ॥
लोगस्स विगेरे (अर्थात) लोगस्स - पुक्खरवर और सिद्धाणं बुद्धाणं इन तीन (सूत्रों) में अनुक्रम से संपदाएँ पद तुल्य (अर्थात्) २८- १६-२० पद और उतनी ही संपदाएँ है । तथा दूसरी बार सूत्रोच्चार के समय नहीं बोले गये अक्षर २६०, २१६ और १९८ है ॥३९॥
पणिहाणि दुवन्नसयं, कमेण सगति चउवीस तित्तीसा; गुणतीस अवीसा, चउती - सिगतीस बार गुरु वन्ना ॥४०॥
तीन प्रणिधान सूत्रों में (जावंति चेई०, जावंतकेवि०, जयवीयराय०) अनुक्रम से ३५, ३८ और ७९ अक्षर - कुल १५२ अक्षर है । तथा संयुक्त व्यंजन नवकार में ७, खमासमण में ३, इरियावहिया में १४, शक्रस्तव में ३३, चैत्यस्तवमें २९, नामस्तव में २७, श्रुतस्तवमें ३४, सिद्धस्तवमें ३१, और प्रणिधान सूत्रों में १२ संयुक्त व्यंजन है ॥४०॥
पण दंडा सक्कत्थय, चेइअ नाम सुअ सिद्धथय इत्थ; दो इग, दो दो पंच य, अहिगारा बारस कमेण ॥ ४१ ॥
श्री चैत्यवंदन भाष्य
१३