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उत्तराध्ययन
व्याख्या – संस्थानानि आकारास्तैः परिणताः संस्थानपरिणताः परिमण्डलं मध्यशुषिरं वृत्तं बलयवत्, वृत्तं मध्ये पूरणं शलरीवत् त्र्यत्रं त्रिकोणं शृङ्गाटकवत्, चतुरस्रं चतुष्कोणं वर्यपट्टादिवत्, आयतं दीर्घं दण्डादिवत् ॥ २१ ॥ अथैषामेवान्योन्यं संबेधमाह -
मूलम् - वण्णओ जे भवे किण्हे, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ २२
व्याख्या - वर्णतो यः स्कन्धादिर्भवेत्कृष्णो भाज्यः 'से उत्ति' स पुनर्गन्धतः सुरभिर्दुर्गन्धो वा स्यान्न तु नियतगन्ध एवेति भावः । एवं रसतः स्पर्शतश्चैव भाज्यः, संस्थानतोऽपि च । अन्यतररसादियोगादिति तत्त्वम् ॥ २२ ॥ मूलम् - वण्णओ जे भवे नीले, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ २३ ॥ वण्णओ लोहिए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए ठाणओविय ॥ २४ ॥ वण्णओ पीअए जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ २५ ॥ वण्णओ सुकिले जे उ, भइए से उ गंधओ । रसओ फासओ वेव, भइए संठाणओवि अ ॥ २६ ॥ गंधओ जे भवे सुब्भी, भइए से उ वण्णओ । रसओ फासओ वेव, भइए संठाणओवि अ ॥ २७ ॥ गंधओ जे भवे दुब्भी, भइए से उ वण्णओ । रसओ फासओ वेव भइए संठाणओवि अ ॥ २८ ॥ रसओ तित्तए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ २९ ॥
ओ कडुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३० ॥ रसओ कसाए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चैत्र, भइए ठाणओवि अ ॥ ३१ ॥ रसओ अंबिले जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चैत्र, भइए संठाणओवि अ ॥ ३२ ॥ रसओ महुरे जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ फासओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३३ ॥ फासओ कक्खडे जे उ, भइए से उ aurओ | गंधओ रसओ वेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३४ ॥ फासओ मउए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३५ ॥ फासओ गरुए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३६ ॥ फासओ जे लहुए उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भड़ए संठाणओवि अ ॥ ३७ ॥ फासओ सीअए जे उ, भइए से उ वण्णओ। गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ३८ ॥ फासओ उण्हए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइ संठाणओवि अ ॥ ३९ ॥ फासओ निद्धए जे उ, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ४० ॥ फासओ लुक्खए जे उ, भइए से उ वणओ | गंधओ रसओ चेव, भइए संठाणओवि अ ॥ ४१ ॥ परिमंडलसंठाणे, भइए से उवण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ॥ ४२ ॥ संठाणओ भवे वट्टे, भइए से उवण्णओ | गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ॥ ४३ ॥ संठाणओ भवे से, भइए से उवणओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ ॥ ४४ ॥ संठाणओ अ चउरंसे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥४५॥ जे आययसंठाणे, भइए से उ वण्णओ । गंधओ रसओ चेव, भइए फासओवि अ॥ ४६ ॥