________________
संस्कृत साहित्य का इतिहास
भारतीय परम्परा के अनुसार पुराण में पाँच बातें होनी चाहिए, अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति, सृष्टि का संहार, देवों की वंशावली, मन्वन्तरों का वर्णन तथा सूर्यवंशी और चन्द्रवंशी राजाओं का वर्णन ।
सर्गश्च प्रतिसर्गश्च वंशो मन्वन्तराणि च । सर्वेष्वेतेषु कथ्यन्ते वंशानुचरितं च यत् ।।
८५
विष्णुपुराण ३ - ६ - २४
यह लक्षण उस समय बनाया गया होगा, जब उस समय विद्यमान पुराणों में ये लक्षण प्राप्त होते होंगे । इस काल के पश्चात् कुछ ऐसे भी विषय प्रायः सभी पुराणों में मिला दिए गए हैं, जिनका उपर्युक्त विषयों से कोई सम्बन्ध नहीं है । केवल विष्णुपुराण में ही उपर्युक्त सब लक्षण घटते हैं । अन्य पुराणों में पृथिवी, प्रार्थना, उपवास, पर्व और तीर्थयात्राओं का भी वर्णन मिलता है । कुछ पुराणों में ज्योतिष, शरीरविज्ञान, औषधियाँ, व्याकरण और शस्त्रों के प्रयोग आदि विषयों का भी वर्णन है ।
पुराणों की मुख्य देन आस्तिकवाद का प्रबल समर्थन है । उनमें बहुत से देवताओं का वर्णन है । वे घोषित करते हैं कि सभी देवता समान हैं, परन्तु वे किसी एक देवता का महत्त्व स्थापित करते हैं । उनमें किसी एक विशेष देवता की उपासना बताई गई है, परन्तु अन्य देवता की उपासना का निषेध नहीं किया गया है । इस प्रकार वे एक देवता की उपासना पर बल देते हैं, परन्तु अन्य की अपेक्षा उसे मुख्य मानकर उपासना का निषेध करते हैं । पुराणों का धर्म बहुदेवतावादी कहा जा सकता है, परन्तु वह सर्वदेवतावादी है ।
पुराण ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि उनमें जो सामग्री उपलब्ध होती है, उसके द्वारा प्राचीन भारत का इतिहास तैयार किया जा सकता है । उनमें शिशुनाग, नन्द, मौर्य, शुंग, आन्ध्र, गुप्त आदि प्रमुख राजवंशों का वर्णन मिलता है । इनमें प्रत्येक राजवंश के लिए जितना समय दिया गया है, उनके समय में समुचित अन्तर करने पर यह सम्भव है कि