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पुराण
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पर्याप्त शुद्धता के साथ उनके समय आदि का निर्धारण किया जा सके । पुराणों में जो राजवंशों का वर्णन है, उस पर अभी तक पाश्चात्य विद्वानों ने उचित ध्यान नहीं दिया है । उन्होंने पुराणों में ऐतिहासिक ष्टि से उसी अंश को स्वीकार किया है जो उनके लिए रुचिकर हया है और जो उनके लिए रुचिकर नहीं है, उसको काल्पनिक कथानक मानकर छोड़ दिया है । वास्तविक दृष्टि से पुराणों में जो कुछ लिखा है, वह ऐतिहासिक सत्य मानना चाहिए ।
भारतीय परम्परा के अनुसार जय महाकाव्य के रचयिता व्यास के पिता पराशर को विष्णुपुराण का लेखक माना जाता है और शेष १७ पुराणों के लेखक व्यास माने जाते हैं । १८ पुराण ये हैं :--(१) ब्रह्माण्ड (२) ब्रह्मवैवर्त (३) मार्कण्डेय (४) भविष्य (५) वामन (६) ब्रह्म (७) विष्णु (८) नारद (६) भागवत (१०) गरुड़ (११) पद्म (१२) वराह (१३) मत्स्य (१४) कूर्म (१५) लिंग (१६) शिव (१७) स्कन्ध (१८) अग्नि । पुराणों में ही पुराणों के ये १८ नाम दिये हुए हैं । कुछ पुराणों में दी हुई सूची में शिवपुराण के स्थान पर वायुपुराण के नाम का निर्देश है । पुराणों में लेखकों का भी निर्देश किया गया है। यह कहा जाता है कि व्यास के सामने उससे पूर्ववर्ती लेखकों के लिखे हुए बहुत से पुराण विद्यमान थे । व्यास ने उनको प्रकाशित ही किया है । एक दूसरे पुराण का कथन है कि व्यास ने केवल एक ब्रह्मपुराण ही लिखा है, शेष १७ पुराण उसके शिष्यों ने लिखे हैं । यह भी कहा जाता है कि व्यास ने १८ पुराणों का संक्षिप्त अंश लिखा है । विष्णुपुराण के अनुसार व्यास ने १८ पुराणों का संक्षिप्त रूप पुराणसंहिता लिखी थी।
आख्यानैश्चोपाख्यानैर्गाथाभिः कल्पशुद्धिभिः । पुराणसंहितां चक्रे पुराणार्थविशारदः ।।
विष्णुपुराण ३-६-१५ शिवपुराण के एक श्लोक का कथन है कि पद्म और ब्रह्मपुराण ब्रह्मा के लिखे हुए हैं, तथा शिवपुराण शैलाली का लिखा हुआ है