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________________ 8 . संस्कृत साहित्य का इतिहास ब्राह्मं तु ब्रह्मणा प्रोक्तं पानं तेनैव शोभनम् । पराशरेण कथितं वैष्णवं मुनिपुंगवाः । शैवं शैलालिना प्रोक्तम् । शिवपुराण भविष्यपुराण का कथन है कि सब पुराणों में कुल मिलाकर १२ सहस्र श्लोक थे । यह उचित है कि व्यास को १८ पुराणों का रचयिता माना जाए। ये १८ पुराण व्यास के पूर्ववर्ती १८ बृहत् पुराणों के संक्षिप्त रूप समझने चाहिए । व्यास के बाद पुराणों के ढंग का साहित्य, जिसका अन्यत्र समावेश नहीं होता था, पुराणों के ही अन्दर समाविष्ट किया गया । ऐसे स्थलों के समावेश के समय प्रकरण आदि का भी उचित ध्यान नहीं दिया गया है। अतएव पुराण जिस रूप में आज प्राप्त होते हैं, वे किसी विषय पर कोई निश्चित सूचना नहीं देते हैं। इस प्रकरण में यह उल्लेख उचित है कि शंकराचार्य ने विष्णुपुराण को छोड़कर अन्य किसी भी पुराण से कोई उद्धरण नहीं दिया है । इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ६०० ई० से पूर्व यद्यपि अन्य पुराण विद्यमान थे, तथापि वे प्रामाणिक ग्रन्थों में नहीं माने जाते थे । रामानुज के समय के बाद से ही ये पुराण प्रामाणिक माने जाने लगे हैं। पुराण दो या अधिक व्यक्तियों के बीच में वार्तालाप के रूप में हैं और इस रूप में ये महाभारत के समान हैं। पुराण स्वरूपतः नीति ग्रन्थ हैं और लक्ष्य की दृष्टि से साम्प्रदायिक हैं। इनमें बहुत से अत्युपयोगी नीति और कर्त्तव्य सम्बन्धी उपदेश है । ये कर्तव्य शिक्षा के रूप में दिए हैं। इन उपदेशों के लक्ष्य में अन्तर है। ये धार्मिक सम्प्रदायों के किसी विशेष वर्ग के मन्तव्यों को उपस्थित करते हैं । इसी विचार से इनको सात्विक, राजस और तामस तीन भेदों में विभक्त किया गया है। विष्णु की भक्ति से सम्बद्ध विष्णु, नारद, भागवत, गरुड़, पद्म और वराह ये ६ पुराण सात्विक पुराण माने गए हैं । ब्रह्मा की भक्ति से सम्बद्ध
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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