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पुराण
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ब्रह्माण्ड, ब्रह्मवैवर्त, मार्कण्डेय, भविष्य, वामन और ब्रह्म ये ६ राजस पुराण माने गए हैं । शिव की भक्ति से सम्बद्ध मत्स्य, कूर्म, लिंग, शिव, स्कन्ध और अग्नि ये ६ तामस पुराण माने गए हैं। पुराणों का यह विभाजन इस बात को लक्ष्य में रखकर किया गया है कि हिन्दुओं के मुख्य तीनों देवताओं के नाम और पुराणों की संख्या समान हो । कुछ पुराण यद्यपि किसी विशेष देवता को भक्ति का प्रतिपादन करते हैं, तथापि वे लक्ष्य की दृष्टि से साम्प्रदायिक नहीं हैं । मार्कण्डेय और भविष्यपुराण सर्वथा साम्प्रदायिक नहीं हैं । ब्रह्मपुराण यद्यपि ब्रह्मा की भक्ति का प्रतिपादक है, तथापि उसमें सूर्य की भक्ति का भी वर्णन है । अतएव उपर्युक्त विभाजन पूर्णरूप से ठीक नहीं है ।
विष्णुपुराण के रचयिता पराशर हैं। यह विष्णु को अवतार मानता है और उनकी उपासना का वर्णन करता है । इसमें वैष्णवों द्वारा किए जाने वाले उपवास और अन्य प्रायोजनों का वर्णन नहीं है और न विष्णु के मन्दिर का ही वर्णन है | इसमें मौर्यवंशी राजाओं का वर्णन है । यही एक पुराण है जिसमें पुराण के लक्षणों का पूर्णतया पालन किया गया है । नारदपुराण को बृहन्नारदीयपुराण भी कहते हैं । इसमें उत्सवों और पर्वों आदि का वर्णन है । इस पुराण के अनुसार मुक्ति समाधि और ईश्वर भक्ति से प्राप्त होती है । भागवतपुराण में कृष्ण के जीवन का वर्णन है । इसमें १८ सहस्र श्लोक हैं । यह १२ स्कन्धों में विभाजित है । इनमें से दशम स्कन्ध बहुत प्रचलित है । इसमें कृष्ण के पराक्रमों का वर्णन है । इस पुराण को बहुत-सी टीकाएँ हुई हैं और कई भारतीय भाषाओं में इसका अनुवाद भी हुआ है । इस पुराण में गौतम बुद्ध और कपिल मुनि को विष्णु का अवतार माना गया है । इसके अध्ययन से ज्ञात होता है कि यह सुसम्बद्ध रचना है । इसकी शैली कुछ स्थलों पर वैदिक काल की शैली से समता रखती है और कुछ स्थलों पर श्रेण्य - काल की शैली से । पुराणों में यह सबसे अधिक प्रसिद्ध है । शंकराचार्य और रामानुज ने इस पुराण से कोई उद्धरण नहीं दिया है । इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता है कि यह पुराण ७०० ई० के लगभग नहीं था । विष्णु