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संस्कृत साहित्य का इतिहास
पुराण प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता था, अतः शंकर और रामानुज ने विष्णुपुराण से ही उद्धरण दिए हैं। उनका काम विष्णुपुराण से चल गया है, अतः उन्होंने अन्य पुराणों से उद्धरण लेने की आवश्यकता अनुभव नहीं की । आनन्दतीर्थं सर्वप्रथम लेखक हैं, जिन्होंने इन पुराणों से उद्धरण दिए हैं और भागवतपुराण की टीका भी की है । वोपदेव ( १३वीं शताब्दी ई० ) ने भागवत का परिशिष्ट हरिलोला लिखा है ।
गरुड़ पुराण में गणित और फलित ज्योतिष, प्रौषधियाँ, व्याकरण, रत्नों के प्रकार और मूल्य तथा इस प्रकार के अन्य विषयों का वर्णन है, जिनका पुराण के लक्ष्य और उद्देश्य से कोई सम्बन्ध नहीं है । पद्मपुराण पाँच खंडों में विभाजित है । उनके नाम ये हैं-- प्रादिखंड, भूमिखंड, पातालखंड, सृष्टिखंड और उत्तरखंड । इस पुराण का नाम पद्म शब्द से पड़ा है, जिससे ब्रह्मा की उत्पत्ति हुई है । इस पुराण में राधा को कृष्ण की पत्नी होने का उल्लेख किया गया है । विष्णु और भागवतपुराण में राधा को कृष्ण की पत्नी होने का उल्लेख नहीं है । इसमें अन्य कथात्रों के साथ ही शकुन्तला और राम की कथा भी है । इसमें दी हुई ये दोनों कथाएँ कालिदास के शाकुन्तल और रघुवंश में दो हुई कथाओं से अधिक मिलती हैं । रामायण और महाभारत में दी हुई कथाओं से उतनी नहीं मिलती हैं । आलोचकों का कथन है कि ये स्थल कालिदास के बाद के लिखे हुए हैं । वराहपुराण में विष्णु का वराह के रूप में अवतार होने का वर्णन है । इसमें मातृभूमि को देवता मानकर उसकी स्तुति भी की गई है ।
ब्रह्माण्डपुराण उपाख्यानों और तीर्थ- माहात्म्यों आदि का संग्रहमात्र है । इसमें पुराणों में वर्णन वाली बातें कम हैं । इसमें सात खण्डों में अध्यात्मरामायण दी हुई है । यह महाभारत आदि के तुल्य शिव और पार्वती के संवाद के रूप में लिखा गया है । इसका कथन है कि अद्वैत- बुद्धि और रामभक्ति से मोक्ष प्राप्त होता है । ब्रह्मवैवर्तपुराण का मत है कि सम्पूर्ण सृष्टि ब्रह्म की मायामात्र है । अतएव इसका नाम वैवर्त रक्खा गया है । इसके चार