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संस्कृत साहित्य का इतिहास दिया गया है। महाभारत में हिन्दुत्व के विभिन्न रूपों का दर्शन होता है, जैसे--एकेश्वरवाद, बहुदेवतावाद, अध्यात्मवाद और भौतिकवाद ।।
रामायण में स्वयंवर के अवसर पर धनुर्विद्या सम्बन्धी परीक्षण सरल है, किन्तु महाभारत में उसमें विशेष सुधार किया गया है और उसमें नवीनता लाई गई है। रामायण में वानर और राक्षस अपनी माया-शक्ति का प्रयोग करते हुए युद्ध करते हैं, किन्तु महाभारत में घटोत्कच को छोड़कर अन्य सभी मनुष्य ही भाग लेते हैं । महाभारत में प्राप्त होने वाले युद्ध के विभिन्न प्रकार एवं क्रौंचव्यूह, मकरव्यूह, श्येनव्यूह, पद्मव्यूह आदि सेना-संचालन के ढंग रामायण में प्राप्त नहीं होते । रामायण में सती-प्रथा का वर्णन नहीं है, किन्तु महाभारत में है। रामायण के काल में विदेशियों का प्रभाव नहीं था, किन्तु महाभारत के काल में उनका प्रभाव दिखाई देता है । रामायण में लंका के अतिरिक्त अन्य किसी विदेश का उल्लेख नहीं है, किन्तु महाभारत में कई अन्य देशों का उल्लेख है । रामायण के अनुसार दक्षिण भारत में वन्य पशु ही अधिक रहते थे तथा कतिपय ऋषियों के आश्रम थे, परन्तु महाभारत के अनुसार वहाँ पर सभ्य मनुष्य रहते थे।
रामायण और महाभारत दोनों इसी देश की रचना हैं। दोनों ग्रन्थों ने भारतीयों को युगों तक प्रभावित किया है । श्रेण्यकाल के संस्कृत कवियों ने इनको चेतना प्राप्ति का आधार-स्रोत माना है ।