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________________ महाभारत ८५ और रामायण के काण्ड सर्गों में विभक्त हैं । अपने पूर्ण रूप में महाभारत विभिन्न विषयों का संग्रहमात्र प्रतीत होता है और रामायण एक सुसम्बद्ध एवं पूर्ण कथानक ज्ञात होता है । शैली की दृष्टि से महाभारत में समानता नहीं है, किन्तु सरलता, अोज और प्रभावोत्पादकता है । रामायण की शैली सुन्दर, स्पष्ट और सुसंस्कृत है । इसमें काव्यगौरव विद्यमान है। रामायण में महाभारत की कथा का कहीं भी उल्लेख नहीं है, परन्तु महाभारत में रामायण की कथा और वाल्मीकि का कई स्थानों पर उल्लेख है। इस पर रामायण का प्रभाव भी दृष्टिगोचर होता है । रामायण और महाभारत दोनों के वर्णन में समानता है । दोनों का प्रारम्भ राज-सभा से होता है और उसके बाद प्रायः समान काल के लिए वनवास का वर्णन आता है । वनवास के समय दोनों की ही एक ग्रामीण मुखिया से मित्रता होती है । तत्पश्चात् दोनों में ही युद्ध के दृश्य आते हैं । ये दोनों ही महाकाव्य दुःखान्त हैं। दोनों का उद्देश्य एक ही है--"अधर्म कुछ समय के लिए ही सफल हो सकता है, किन्तु अन्तिम विजय धर्म की ही होगी।" इन दोनों महाकाव्यों के रचयिता दोनों काव्यों के नायकों के समकालीन है और उनका उनसे सम्बन्ध भी है। ये दोनों ही महाकाव्य दोनों लेखकों के शिष्यों द्वारा अश्वमेध और राजसूय यज्ञ के समय सुनाए गए हैं । रामायण में केवल एक नायक है और महाभारत में कई नायक हैं, जो कि मुख्यता की दृष्टि से समान हैं। रामायण के पात्र उच्च आदर्शों के पालक हैं। महाभारत के पात्र प्रतिक्रियावादी हैं। उन्हें उपदेश दिया जाता है कि वे उच्च आदर्शों का पालन करें, परन्तु वे पालन नहीं करते । नैतिकता का जो उच्च आदर्श सीता की अग्निपरीक्षा में दृष्टिगोचर होता है, वह महाभारत में केवल उल्लेख के रूप में आता है। उसका प्रयोग नहीं दीखता है। वाल्मीकि के समय में जाति-प्रथा के कठोर नियमों का पालन होता था, परन्तु व्यास के समय में यह प्रथा बहुत शिथिल हो गई थी। रामायण में जोवन के दार्शनिक और धार्मिक स्वरूप पर ब्राह्मणत्व की छाप है और राम की दिव्यता पर बल
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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