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संस्कृत साहित्य का इतिहास
हरिवंशस्ततः पर्व पुराणं खिलसंज्ञितम् । ... एतत्पर्वशतं पूर्णं व्यासेनोक्तं
महात्मना ।।
महाभारत आदि ० २,८३-८४
महाभारत में उपाख्यान बहुत हैं । पूरे महाभारत के लगभग में उपाख्यान हैं । इनमें से कुछ गद्यमें हैं । उनकी भाषा से ज्ञात होता है कि उनमें से अधिकांश अधिक प्राचीन हैं। उनमें से प्रमुख उपाख्यान ये हैं :- गंगावतरण, ऋष्यश्रृंग परशुराम, च्यवन, शिबि, दशरथ के पुत्र राम, सावित्री, नहुष, त्रिपुर-संहार, शकुन्तला, नल, ययाति और मत्स्य की कथाएँ । मत्स्य वाली कथा में मत्स्य अपने आप को सृष्टि का कर्त्ता ब्रह्मा बताता है, न कि विष्णु ।
इसकी निम्नलिखित टीकाएँ हैं -- ( १ ) सबसे प्राचीन टीका सर्वज्ञ नारायण की है । वह १४वीं शताब्दी में हुए थे । यह टीका अपूर्ण है । (२) अर्जुनमिश्र की टीका । इसने सर्वज्ञ नारायण का उल्लेख किया है । १८७५ ई० में कलकत्ता संस्करण के साथ यह प्रकाशित हुई है । ( ३ ) नीलकंठ की टीका । यह १६वीं शताब्दी में हुए हैं । यह महाराष्ट्र में कूर्पर स्थान के रहने वाले थे । इनकी टीका मुद्रित रूप में उपलब्ध है । महाभारत की अन्य बहुत-सी टीकाएँ हैं । बहुत से भारतीय विद्वानों ने इसकी आलोचना भी लिखी है । इनमें से श्रानन्दतीर्थ का महाभारततात्पर्यनिर्णय और अप्पयदीक्षित का महाभारततात्पर्यसंग्रह विशेष प्रसिद्ध हैं ।
रामायण और महाभारत की तुलना
रामायण और महाभारत के अध्ययन से ज्ञात होता है कि किस प्रकार ये दोनों कुछ अंशों में बहुत समान हैं और कुछ अंशों में बहुत विषम हैं । भाषा की दृष्टि से महाभारत प्राचीन प्रतीत होता है, क्योंकि इसके आख्यानक कुछ कम संस्कृत रूप में हैं । ये आख्यानक व्यास के रचित नहीं हैं । इनके रचयिता कोई प्राचीन लेखक हैं । व्यास को ये जिस रूप में उसने उनको रख दिया है । महाभारत के पर्व
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रूप में प्राप्त हुए, उसी अध्यायों में विभक्त हैं