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महाभारत
भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, दुर्योधन, विदुर, कर्ण आदि अपने स्वभाव और व्यवहार के कारण अपनी विलक्षणता रखते हैं। दुर्योधन के माता-पिता का अपने पुत्रों के प्रति पुत्र-स्नेह तथा पीड़ित पाण्डवों के प्रति सहानुभूति का भी साथ ही साथ अध्ययन किया गया है और उसका प्रभाव भी दिखाया गया है। स्त्री पात्रों में कुन्ती और द्रौपदी का स्थान मुख्य है । कुन्ती ने अपने पुत्रों को प्ररणा दी थी कि वे राज्य में अपना उचित अधिकार प्राप्त करें, क्योंकि वह उन्हें किसी प्रकार भी इस हीन अवस्था में नहीं देख सकती थी । युधिष्ठिर के राज्याभिषेक के बाद वह धृतराष्ट्र और गान्धारी के साथ वन को चली गई। जब युधिष्ठिर ने उससे अनुरोध किया कि वह उसके साथ राजधानी में रहे तो उसने अपना भाव स्पष्ट किया कि क्यों उसने उन्हें युद्ध के लिए प्रेरित किया था । वह अपने पुत्रों का अधिकार छीना हुआ नहीं देख सकती थी। युधिष्ठिर को राज्य मिलने से उसकी इच्छा पूर्ण हो गई, अतः वह अब अपने पुत्रों के साथ नहीं रहना चाहती, अपितु वन में जाना चाहती है। __ महाभारत में मुख्य कथा के अतिरिक्त नीति और प्राचार सम्बन्धी छोटे उपाख्यान भी हैं । अतएव इसको धर्मशास्त्र कहा गया है। इसमें राजाओं, चारों वर्णों और आश्रमों के व्यक्तियों, दाताओं, यतियों तथा मुमुक्षुत्रों के कर्तव्यों का विस्तृत वर्णन किया गया है। अग्निपरीक्षा आदि के अवसरों पर किए जाने वाले कार्यों का भी वर्णन किया गया है । ऐसे वर्णन प्रायः सारे महाभारत में फैले हुए हैं, परन्तु मुख्यरूप से ये वर्णन शान्तिपर्व और अनुशासनपर्व में हैं। सुप्रसिद्ध भगवद्गीता भी इसी में सम्मिलित है, अतः इसका महत्त्व और बढ़ जाता है । कृष्ण ने युद्ध भूमि में युद्ध से पूर्व अर्जुन को धर्म के विषय में जो उपदेश दिया है, वही भगवद्गीता के १८ अध्यायों में है । इसमें जीवात्मा, परमात्मा और प्रकृति के स्वरूप, मनुष्य के कर्तव्य, भौतिक और आत्मिक उन्नति के मार्ग आदि का विस्तृत विवेचन किया गया है । धर्मशास्त्रों की ऐतिहासिक प्रगति में महाभारत का मुख्य स्थान है । यह वैष्णवों की स्मृति मानी जाती है । क्योंकि (१) इसे कृष्णवेद कहते हैं अर्थात् कृष्ण से सम्बद्ध वेद । (२) इसके सं० सा० इ०--६