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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास बाद की मिलावट ही समझना चाहिए । इन प्रक्षिप्त अंशों को छोड़कर ३००० ई० पू० में महाभारत उपलब्ध था, यह मानना चाहिए । महाभारत का यह समय मानने में कोई कठिनाई नहीं है । आलोचनात्मक दृष्टि से महाभारत का गौरव महाभारत पद्यों में लिखा गया है । कुछ सन्दर्भ गद्य में भी हैं और शैली की दृष्टि से वे महाभारत से प्राचीन ज्ञात होते हैं । महाभारत की भाषा सरल है और उसमें शब्दों के प्राचीन रूप बहुत उपलब्ध होते हैं । ऐसा ज्ञात होता है कि यह उस समय की बोलचाल की भाषा थी । इसकी शैली एक प्रकार की नहीं है, क्योंकि इसके लेखक व्यास, वैशम्पायन, सौति तथा अन्य कई कवि हैं, जो कि विभिन्न समयों में हुए हैं । इसके शब्दों, लोकोक्तियों और वर्णनों पर वाल्मीकि का विशेष प्रभाव लक्षित होता है । ८० महाभारत का अधिकांश भाग संवादों और वर्णनों में पूर्ण हुआ है । इसके संवाद विचारपूर्ण, प्रवायुक्त तथा शक्तिशाली हैं । इन संवादों में उल्लेखनीय बात यह है कि इनमें वक्ता अपने भावों को निर्भीकता के साथ व्यक्त करता है । ये संवाद स्पष्ट और वास्तविकता से पूर्ण हैं | पांडवों और कौरवों की धनुर्विद्या की परीक्षा, वनवास के समय पांडवों का वन का जीवन, द्यूतक्रीड़ा, शल्य के साथ कर्ण का युद्ध के लिए प्रस्थान आदि वर्णनों में बहुत ही रुचिकर संवाद हैं । इसके वर्णन, विशेषकर युद्ध के वर्णन, बहुत ही वास्तविकता से युक्त हैं, इसके अन्य वर्णन भी सुन्दर हैं, परन्तु काव्य की दृष्टि से वे रामायण से हीन हैं । इसकी कथा सारथि संजय धृतराष्ट्र को सुनाता है । बीच-बीच में संजय उवाच (संजय ने कहा ), धृतराष्ट्र उवाच ( धृतराष्ट्र ने कहा ) आदि के द्वारा वर्णनों की अरोचकता आदि को दूर किया गया है । I व्यास चरित-चित्रण में बहुत ही कुशल और समर्थ हैं | व्यास ने अपने पात्रों का जैसा चरित्र-चित्रण किया है, उससे उनके प्रत्येक पात्र अपना स्वतन्त्र अस्तित्व रखते हैं । उन्होंने प्रदर्शित किया है कि किस प्रकार कठिनाई के समय में मनुष्य का मस्तिष्क कार्य करता है । महाभारत के सभी मुख्य पात्र युधिष्ठिर,
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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