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महाभारत
इन साक्ष्यों के अतिरिक्त मेगस्थनीज ने अपने लेखों में हेराकिल्स अर्थात् कृष्ण को सन्द्रकोट्टस अर्थात् मौर्यवंशी चन्द्रगुप्त से १३८ पीढ़ी पूर्ववर्ती माना है | चन्द्रगुप्त मौर्य का समय ३२० ई० पू० है । एक पीढ़ी का समय साधारणतया २० वर्ष मानने पर कृष्ण का समय ३०८० ई० पू० के लगभग होता है । भारतीय परम्परा के अनुसार महाभारत का यही समय है ।
पाश्चात्त्य विद्वान् किसी भी साहित्यिक ग्रन्थ को इतना प्राचीन मानने के लिए उद्यत नहीं है । वे यह सिद्ध करने का प्रयत्न करते हैं कि महाभारत ईसवीय सन् के प्रारम्भ में इस रूप में आया । उनका कथन है कि महाभारत का प्रथम संस्करण ३००० ई० पू० के बाद ही लिखा गया होगा, क्योंकि उसी समय आर्य लोग भारत में आए । ईसवीय सन् के प्रारम्भ तक इसमें कतिपय अंश सम्मिलित होते रहे । अन्यथा महाभारत में प्राप्त कतिपय स्थलों के लिए कोई उत्तर नहीं हो सकता है । उदाहरणार्थ - - महाभारत में यवनों और म्लेच्छों अर्थात् यूनानियों का उल्लेख है । यह उल्लेख ३२६ ई० पू० के बाद ही हो सकता था । महाभारत में यवनों द्वारा साकेत पर आक्रमण का उल्लेख है । यह १४५ ई० पू० में मेनान्दर के निरीक्षण में हुए साकेत पर यूनानी आक्रमण का निर्देश है । यूनानी लेखक रेटर डियन क्रिसोस्टम ( प्रथम शताब्दी ई० का पूर्वार्ध) का कथन है कि उसके समय में महाभारत एक लाख श्लोकों युक्त 'दक्षिण भारत में सुप्रचलित था ।
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पाश्चात्त्य विद्वानों का यह मत विश्वास योग्य नहीं है, क्योंकि यवन और म्लेच्छ कौन थे यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है । यूनानियों के आगमन से बहुत पूर्व भारतवर्ष का कितने ही विदेशी देशों से सम्बन्ध विद्यमान था । यवन और म्लेच्छ शब्द साधारणतया विदेशियों के लिए प्रयुक्त होता था । महाभारत के ये निर्देश यूनानियों के अतिरिक्त अन्य विदेशियों के लिए होंगे, जो ३२६ ई० पू० से बहुत पूर्व भारत में आए थे । अन्य निर्देशों को
१.
Weber——History of Indian Literature. पृष्ठ १८६ ।