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संस्कृत साहित्य का इतिहास __ अतएव विभिन्न विषयों पर प्राप्त होने वाली सभी कथाएँ तथा श्लोक इसमें सम्मिलित किए गए । (२) इसे नीतिशास्त्र और आचारशास्त्र का ग्रन्थ बनाने की इच्छा की गई । अतएव इस विषय से संबद्ध सभी बातें इसमें संग्रह की गईं । (३) कई कथानों की पुनरुक्ति हुई है। संभवतः समय के प्रभाव से कतिपय अध्याय और श्लोक नष्ट हो गए थे । अतः प्रयत्न किया गया कि उस क्षति की पूर्ति नए अध्यायों और श्लोकों के द्वारा की जाए। इनमें वे ही कथाएँ रक्खी गईं जो पहले से इसमें विद्यमान थीं । ययाति और वत्र आदि की कथानों का इस विषय में उल्लेख किया जा सकता है । (४) प्रकृति के काव्योचित वर्णन और स्त्रियों के विलाप में वाल्मीकि का कुछ प्रभाव दृष्टिगोचर होता है । संभवतः इनमें से कुछ वर्णन बाद में सम्मिलित किए गये हैं।
महाभारत का रचनाकाल , पाण्डवों और कौरवों का युद्ध कलियुग के प्रारम्भ से कुछ ही पूर्व हुआ था । कलियुग का प्रारम्भ ३१०१ ई० पू० में हुआ था । महाभारत इस युद्ध के कुछ वर्ष बाद लिखा गया होगा । अतः जय महाकाव्य का समय ३१०० ई० पू० के लगभग मानना चाहिये । जय महाकाव्य अर्जुन के प्रपौत्र जनमेजय के नागयज्ञ में पढ़ा गया था । जनमेजय का समय ३००० ई० पू० के लगभग मानना चाहिए। अतः महाभारत के द्वितीय संस्करण का समय लगभग इसी समय मानना चाहिए। शौनक ने जनमेजय के नागयज्ञ के कुछ ही समय पश्चात् यज्ञ किया था । अतः सौति का महाभारत का संस्करण लगभग उसी समय तैयार हुआ होगा ।
अन्तःसाक्ष्य के आधार पर ज्ञात होता है कि यही समय महाभारत के रचनाकाल का है । युद्ध के प्रारम्भ होने के समय सभी ग्रह अश्विनी नक्षत्र के समीप आ गए थे । गणनानुसार ऐसी स्थिति होने का समय ३१०१ ई० पू० में था। भारतीय परम्परा के अनुसार महाभारत के युद्ध के पश्चात् कलियुग प्रारम्भ हुआ । इसका समर्थन भारतीय ज्योतिविद् प्रार्यभट्ट भी करते हैं, जिनका जन्म छठी शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ था