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संस्कृत साहित्य का इतिहास
का वर्णन सुनावें । इस पर व्यास ने अपने शिष्य वैशम्पायन को आदेश दिया कि वह 'जय' महाकाव्य सुनावे । उसने यह महाकाव्य सुनाया । जनमेजय ने विभिन्न स्थलों पर कतिपय प्रश्न किए । इनका उत्तर वैशम्पायन ने दिया । ये उत्तर वाले स्थल व्यास-रचित ग्रन्थ में सम्मिलित नहीं थे । संभवतः ये उत्तर वैशम्पायन के थे या उसको ये उत्तर अन्य स्थान से प्राप्त हुए थे । व्यास के मूल भाग को वैशम्पायन वाले भाग के साथ मिलाने पर महाभारत की द्वितीय स्थिति आती है । द्वितीय स्थिति में महाभारत संभवतः आदिपर्व के ६१वें अध्याय से प्रारम्भ होता है । इस अध्याय में महाभारत की कथा का संक्षिप्त विवरण है, जो वैशम्पायन ने जनमेजय को सुनाई थी । वैशम्पायन वाले महाभारत के स्वरूप का नाम भारतसंहिता पड़ा । इसमें उपाख्यानों को छोड़ने पर २४ सहस्र श्लोक थे । इससे यह निष्कर्ष निकालना संभव है कि व्यास ने जो 'जय' नामक महाकाव्य बनाया था, उसमें २४ सहस्र श्लोकों से कुछ कम श्लोक रहे होंगे, क्योंकि वैशम्पायन ने संभवतः मूल ग्रन्थ में अधिक श्लोक नहीं मिलाए होंगे ।
चतुर्विंशतिसाहस्री चक्रे भारतसंहिताम् । उपाख्यानैविना तावद् भारतं प्रोच्यते बुधैः ।।
महाभारत, आदि० १-७८ व्यास के चार और शिष्य थे, जैमिनि, पैल, सुमन्तु और शुक । इन चारों ने 'जय' महाकाव्य के पृथक् संस्करण प्रकाशित किए । जैमिनि के अश्वमेधपर्व को छोड़कर शेष सभी संस्करण नष्ट हो गए हैं । जैमिनि का अश्वमेधपर्व युधिष्ठिर द्वारा किए गए अश्वमेध का वर्णन करता है । __ जनमेजय के नागयज्ञ के कुछ ही समय पश्चात् शौनक ऋषि ने नैमिषारण्य में १२ वर्ष चलने वाला यज्ञ किया। इसमें बहुत से ऋषि उपस्थित हुए थे । उनमें रोमहर्षण ऋषि के पुत्र सौति ऋषि भी थे । सौति जनमेजय के नागयज्ञ के समय उपस्थित थे और उस समय वैशम्पायन ने महाभारत का जो पाठ किया था, वह भी उसने सुना था। शौनक की प्रार्थना पर सौति ने वैशम्पायन