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अध्याय
महाभारत
महाभारत दूसरा भारतीय ऐतिहासिक महाकाव्य है । इसके रचयिता व्यास हैं । विश्व - साहित्य के इतिहास में यह सबसे बड़ा महाकाव्य है । यह ईलियड और ओडिसी के संयुक्त परिमाण से आठ गुना है । यह १८ पर्वों में विभक्त है । १८ पर्व ये हैं - - प्रादि, सभा, वन, विराट्, उद्योग, भीष्म, द्रोण, कर्ण, शल्य, सौप्तिक, स्त्री, शान्ति, अनुशासन, प्राश्वमेधिक, श्राश्रमवासिक, मौसल, महाप्रस्थानिक और स्वर्गारोहण । इनमें से १२वाँ शान्तिपर्व सबसे बड़ा है । इसमें लगभग १४७०० श्लोक हैं । १७वाँ महाप्रस्थानिकपर्व सबसे छोटा है । इसमें केवल ३१२ श्लोक हैं । इसका एक परिशिष्टपर्व हरिवंश भी है । हरिवंश को सम्मिलित करने पर महाभारत में एक लाख श्लोक हैं ।
महाभारत में पांडवों और कौरवों की कथा है । यह कथा अति प्रचलित है; अतः इसके वर्णन की आवश्यकता नहीं है । इस कथा के अतिरिक्त इसमें देवताओं, राजाओं और ऋषियों को कथाएँ हैं, जिनका मुख्य कथा से साक्षात् कोई सम्बन्ध नहीं है । इसमें सृष्टि की उत्पत्ति, देवों की वंशावली, दार्शनिक विवेचन, नीति, धर्म, वर्णों और आश्रमों के कर्तव्यों का वर्णन भी है । यह मनुष्य जीवन के उद्देश्य स्वरूप धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इस चतुर्वग की प्राप्ति की शिक्षा देता है । इसी आधार पर इसको पंचम वेद कहा गया है ।
भारत: पंचमो वेद: ।
व्यास हरिवंश सहित महाभारत के रचयिता हैं । इनका प्रथम नाम कृष्ण पायथा, क्योंकि ये एक द्वीप में उत्पन्न हुए थे और इनका रंग कृष्ण था । ये पराशर ऋषि के पुत्र थे । इन्होंने ही वेदों को ऋग्, यजुः, साम और अथर्व इन चार भागों में विभक्त किया था । अतएव इनका नाम व्यास पड़ा ।
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