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________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास हिन्दू इसको पूजनीय ग्रन्थ मानते हैं । धार्मिक विचार वाले व्यक्ति प्रतिदिन इसका पारायण करते हैं। रचनाकाल से ही इसको असाधारण यश प्राप्त हुआ है। वाल्मीकि ने इसके विषय में भविष्यवाणी की थी कि जब तक पर्वत और नदियाँ भूतल पर है, तब तक रामायण की कथा संसार में व्याप्त रहेगी। यावत् स्थास्यन्ति गिरयः सरितश्च महीतले । तावद् रामायणकथा लोकेषु प्रचरिष्यति । रामायण, बालकाण्ड २-३६-७ वाल्मीकि की यह भविष्यवाणी प्रायः पूर्ण हुई है। रामायण को आदिकाव्य तथा वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है। रामायण की यह लोकप्रियता उसकी शैली, कवि का चरित्र-चित्रण और वर्णन की असाधारण शक्ति तथा असंख्य स्मरणीय सुभाषितों के कारण है । वाल्मीकि की शैली सरल, उत्कृष्ट, अलंकृत और सुसंस्कृत है । इसमें अप्रचलित शब्दों का सर्वथा अभाव है । शैली की यह सरलता अतिप्रचलित शब्दों के प्रयोग के कारण और बढ़ गई है । सरलता के साथ ही इसमें काव्यगौरव भी परिपूर्ण है । यह अलंकारों से भी अलंकृत है। वाल्मीकि ने उपमा, स्वभावोक्ति और रूपक का अत्युत्तम रीति से प्रयोग किया है । यही एक ऐसा महाकाव्य है, जिसमें सभी रसों का समुचित परिपाक हुआ है। इसमें कुछ ऐसे रूपों का भी प्रयोग मिलता है, जो पाणिनीय व्याकरण की दृष्टि से असिद्ध हैं । इससे ज्ञात होता है कि पाणिनि से पूर्व प्रचलित साहित्यिक भाषा का वाल्मीकि ने प्रयोग किया है। इसकी भाषा का श्रोताओं पर जो असाधारण प्रभाव होता है, वह अवर्णनीय है । अतएव रामायण आज तक प्रचलित है । वाल्मीकि ने अपने पात्रों का विभिन्न परिस्थितियों में जो सजीव चरित्रचित्रण किया है । उससे उनकी मानवहृदय के क्रियाकलाप के प्रति असाधारण अन्तर्दृष्टि परिलक्षित होती है। वाल्मीकि को इस विषय में जो
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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