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संस्कृत साहित्य का इतिहास
है । वह जुती हुई भूमि (सीता) पर विशेष कृपाशील है । प्रतएव इन्द्र को राम बनाया गया है और वह सीता का पति है । इस प्रसंग में रावण के पुत्र का नाम इन्द्रजित् सार्थक है, क्योंकि वह इन्द्र के विजयी वृत्र का संकेत करता है । सरमा के स्थान पर हनुमान् हैं, वे सोता को ढूंढ़ने के लिए जाते हैं, हनुमान् वायु के पुत्र हैं, इसका संकेत महत् देवताओं से प्राप्त होता है, उन्होंने इन्द्र की सहायता की थी ।
दो कथायों में कुछ समानताएँ इस बात का निर्णय नहीं कर सकती हैं कि उनमें से एक दूसरी कथा पर निर्भर है और न इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि वे कथाएँ काल्पनिक हैं । उपर्युक्त दोनों कथाओं में समानता विशेष रोचक है । वृत्र का नाम इन्द्रजित् था, किन्तु यहाँ पर रावण का पुत्र इन्द्रजित् है । उसको तुलना वृत्र से नहीं की जा सकती है, क्योंकि वृत्र वालो कथा में इन्द्र की गायों का हर्ता वृत्र है, यहाँ पर सीता का हर्ता रावण है, न कि उसका पुत्र इन्द्रजित् । सोला को समता कृष्ट भूमि से मान्य हो सकता है, परन्तु उसके हरण की समता गायों के हरण के साथ स्थापित नहीं की जा सकती है और गायों की समता कृष्ट भूमि से नहीं हो सकता है । सरमा और मरुत् देवता एक दूसरे से पृथक् हैं। हनुमान् और अन्य वानर एक ही समूह के प्राणो हैं । मरुत् देवताओं के लिए प्रयुक्त मरुन् शब्द का सम्बन्ध केवल हनुमान् के साथ हो सकता है, अन्य वानरों के साथ नहीं, क्योंकि वे वायु के पुत्र नहीं है । राम के सहायक अन्य सभी वानर हैं । जैसी समानता ऊपर दिखाई गई है, वैसी समानता किसी भी साहित्य में दिखाई जा सकती है । ऐसी समानताएँ आकस्मिक हो सकती हैं । इससे यह सिद्ध नहीं किया जा सकता है कि ऐसी समानता रखने वाली कथाओं में से दोनों या एक काल्पनिक है ।
वैज्ञानिक अनुसंधानों के परिणामस्वरूप यह ज्ञात होता है कि मनुष्यों और प्रकृति में कुछ असाधारण रूप दृष्टिगोचर होते हैं । उनका कारण उन वस्तुओं के कुछ असाधारण तत्त्व हैं । पुरातत्त्व के अनुसंधानों से सिद्ध