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ऐतिहासिक महाकाव्य
समय घटित नहीं हुई हैं । इस प्रकार की विचारधारा के कारण पाश्चात्य विद्वानों ने रामायण के विषय में अनेक मन्तव्य प्रस्तुत किए हैं ।
प्रो० वेबर ने अपना मन्तव्य प्रस्तुत किया है कि रामायण बौद्ध ग्रन्थ दशरथजातक और होमर के इलियड पर आधारित है । उन्होंने जो तथ्य इसके समर्थन के लिए प्रस्तुत किए हैं वे इस मन्तव्य का समर्थन करने में असमर्थ हैं । दशरथ जातक रामायण की कथा का ही बौद्ध रूप है । इसमें रावण के विनाश के कारणों का निर्देश नहीं है । इस जातक का उद्देश्य अपने पिता की मृत्यु से दुःखित एक व्यक्ति को धैर्य धारण कराना है । इस जातक के लेखक ने वर्णन किया है कि राम अपने पिता की मृत्यु को सुनकर दुःखित नहीं हुए । जातक के लेखक ने यह कथा यहीं समाप्त कर दी, क्योंकि उसकी दृष्टि में इसको आगे बढ़ाने का कोई लाभ नहीं था । अतः यह मानना पड़ता है कि यह जातक रामायण पर निर्भर है, न कि रामायण इस जातक पर । रामायण को इलियड पर आधारित मानना निराधार ही है । होमर का इलियड सिकन्दर के ३२६ ई० पू० के ग्राक्रमण के बाद ही भारत में प्रचलित हो सकता था, किन्तु रामायण इसके बहुत पूर्व ही प्रचलित हो चुका था । अतः यह मन्तव्य सर्वथा निराधार ही है ।
प्रो० याकोबी ने इस विषय में एक विचित्र मन्तव्य उपस्थित किया है । उन्होंने ऋग्वेद में प्राप्त इन्द्र और वृत्र को कथा तथा रामायण की कथा में समानता उपस्थित को है और यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया है कि वृत्र की कथा काल्पनिक है, अतः रामायण की कथा भी काल्पनिक है । वृत्र एक राजन था । वह इन्द्र का शत्रु था । उसने इन्द्र की गौएँ चुराई और उन्हें समुद्र के पार छिपा दिया । इन्द्र ने सरमा नाम की एक कुतिया गायों का पता लगाने के लिए भेजो। उसने गायों का पता लगाया और इसकी सूचना इन्द्र को दी । इन्द्र ने मरुत् देवताओं की सहायता से वृत्र पर आक्रमण किया और उसका वध किया । याकोबी का कथन है कि रामायण की कथा में
राम इन्द्र के लिए है । सोता जुती हुई भूमि के लिए है । इन्द्र वष्टि का देवता
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