________________
६२
संस्कृत साहित्य का इतिहास
चतुर्विंशत्सहस्राणि
लोकानामुक्तवानृषिः ।
तथा सर्गशतान् पञ्च षट् काण्डानि तथोत्तरम् ।।
रामायण १-४-२ |
जो ग्रन्थ आजकल प्राप्त होता है, उसमें लगभग ६४५ सर्ग और २४ सहस्र से कुछ ही अधिक श्लोक उपलब्ध होते हैं । वाल्मीकि ने मूलरूप में जो सर्ग लिखे थे, उनमें कुछ परिवर्तन भी हुआ है । कुछ सर्ग लुप्त हो गए हैं तथा कुछ नए सर्ग बाद में जोड़े गए हैं । यही बात श्लोकों के विषय में भी घटित हुई है । कुछ श्लोक स्थानान्तरित हुए हैं । रामायण में कुछ स्थल प्रक्षिप्त हैं, यह रामायण के उत्तरीय, उत्तर-पश्चिमीय तथा बम्बई के संस्करणों में सर्गों और श्लोकों के क्रम तथा संख्या में विभिन्नता से स्पष्ट है । कुछ प्रक्षिप्त स्थल अत्यन्त स्पष्ट हैं । विन्ध्य पर्वत के दक्षिणी प्रदेश में राम को कोई सभ्य व्यक्ति नहीं मिले, किन्तु रामायण में पांड्य, चोल, आन्ध्र और कोल आदि का उल्लेख मिलता है । ऐसे श्लोक समय के प्रभाव से नष्ट हुए
रामायण के श्लोकों के स्थान की पूर्ति करने के लिए जोड़ दिए गए हैं । वुद्ध -के विद्याध्ययन और हनुमान के व्याकरण शास्त्र के अध्ययन के प्रकरण में उन ग्रन्थों का भी उल्लेख है, जो कि रामायण के बाद बने हैं । अतः इन्हें प्रक्षिप्त. ही समझना चाहिए । रामायण सहस्रों वर्ष पूर्व बनी है और मौखिक परम्परा के अनुसार जब तक आई है । उसमें सर्गों और श्लोकों का प्रक्षेप होना अवश्यंभावी है । कुछ प्रक्षिप्त श्लोकों को छोड़कर संपूर्ण रामायण वाल्मीकि की ही कृति है, यह मानना सर्वथा उचित है ।
रामायण की कथा की सार्थकता के विषय में कतिपय विचारधाराएँ
पाश्चात्त्य विद्वानों का विचार है कि रामायण कल्पित कथाओं पर आवारित है । मनुष्यों और राक्षसों का युद्ध, हनुमान द्वारा समुद्र का पार करना आदि घटनाएँ वास्तविक नहीं हैं । ये घटनाएँ किसी भी देश में किसी भी