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________________ ऐतिहासिक महाकाव्य ___ यह कयन कि रामायण को महाकाव्य सिद्ध करने के लिए बहुत कुछ. ग्रंश बाद में जोड़ा गया है उचित प्रतीत नहीं होता है । पाश्चात्त्य विद्वानों ने श्लोक शब्द से जो अर्थ निकालने का प्रयत्न किया है, वह संभव नहीं है । वाल्मीकि का शोक श्लोक रूप में प्रकट हुआ ।' पाश्चात्त्य विद्वानों ने श्लोक शब्द का अर्थ अनुष्टप छन्द मात्र लिया है। यहाँ पर श्लोक शब्द का अर्थ पद्यमात्र लेना उचित है। श्लोक शब्द संस्कृत में पद्यमात्र के अर्थ में प्राता है । भारतीय टीकाकारों ने श्लोक शब्द का यह अर्थ नहीं लिया है जो पाश्चात्त्य विद्वान् लेना चाहते हैं । यह मानना उचित है कि वाल्मीकि ने श्लोक अनुष्टुप् तथा अन्य छन्दों में भी बनाए हैं । यदि यह नहीं मानेंगे तो वाल्मीकि को उन सभी सुन्दर पद्यों का रचयिता नहीं मान सकते जो विभिन्न छन्दों में रामायण में प्राप्त होते हैं। यह सिद्ध करना किसी भी आलोचक के लिए प्रशंसा की बात नहीं है कि वह वाल्मीकि जैसे महान् कवि को केवल एक छन्द को रचना करने में समर्थ साधारण कवि सिद्ध करे। यह संभव है कि वाल्मीकि के समय में महाकाव्य के विषय में यह नियम प्रचलित नहीं रहा होगा कि प्रत्येक सर्ग का अन्तिम श्लोक अन्य छन्द में हो। यह भी संभव है कि प्रत्येक सर्ग के अन्तिम श्लोक विभिन्न छन्दों में बाद में बनाए गए हों और प्रत्येक सर्ग के अन्त में जोड़ दिए गए हों। केवल इस आधार पर वाल्मीकि को सभी अन्य छन्दों वाले श्लोकों का रचयिता न मानना सर्वथा अनुचित है । इस प्रसंग में यह उल्लेख कर देना उपयुक्त है कि बालकाण्ड में एक श्लोक आता है कि वाल्मीकि ने अपना यह महाकाव्य ५०० सर्गों में बनाया है और इसमें २४ सहस्र श्लोक हैं । १. रामायण, बालकाण्ड २-४०, शोकः श्लोकत्वमागतः । २. श्लोक संघाते धातु से श्लोक शब्द बना है अर्थात् पद्यात्मक बन्धन । ३. पद्ये यशसि च श्लोकः । अमरकोश, ३, नानार्थवर्ग २ । ४. रामायण, बालकांड, ४-२ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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