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ऐतिहासिक महाकाव्य
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ही इन सर्गों को रामायण के प्रारम्भ में जोड़ दिया है । रामायण के भूमिकाभाग से ज्ञात होता है कि वाल्मीकि ने रामायण बनाने के पश्चात् इसके गान के लिए कुश और लवको चुना । और उन्हें इसकी शिक्षा दी । कुश और लव उस समय कुछ बड़ी आयु के रहे होंगे । अतएव सीता वाल्मीकि के आश्रम में बहुत वर्षों से रहती रही होंगी । भूमिका-भाग से ऐसा प्रतीत होता है कि नारद के जाने के पश्चात् वाल्मीकि ने रामायण की रचना एक वर्ष से कम समय में ही की है । ऐसा ज्ञात होता है कि राम के द्वारा सीता का निर्वासन और उनके श्राश्रम में आने के पश्चात् वाल्मीकि ने राम का जीवनग्रन्थ-रूप में निबद्ध करने का विचार किया होगा । उन्होंने इस कार्य के आरम्भ करने से पूर्व नारद की स्वीकृति लेनी आवश्यक समझी होगी । अतएव उन्होंने नारद की स्वीकृति ली ।
यदि वाल्मीकि ने उत्तरकाण्ड की रचना नहीं की है तो इसके अन्य लेखक को राम के अभिषेक के बाद का वृत्तान्त किस प्रकार प्राप्त हुआ ? वाल्मीकि की रचना शोक से प्रारम्भ हुई है, अतः उन्होंने उसे दुःखान्त रूप में समाप्त किया होगा । कई कारणों से वाल्मीकि को ही उत्तरकाण्ड का भी रचयिता मानना उचित है । इस काण्ड के अभाव में भरत और शत्रुघ्न केवल आज्ञाकारी भाई के रूप में ही प्रसिद्ध होते । वे युद्धों में विजयी के रूप में प्रसिद्ध न होते । उत्तरकाण्ड में उल्लेख है कि भरत ने युद्ध में गन्धर्वों को जीता और शत्रुघ्न ने लवण राक्षस को मारा और इस प्रकार अपना नाम सार्थक किया । यदि वाल्मीकि ने यह काण्ड न लिखा होता तो उन पर चरित्रचित्रण में अकुशलता का दोष आता ।
वाल्मीकि ने उत्तरकांड को भी बनाया है, इस बात के सार्थक तीन प्रमाण है । महाभारत ( ३००० ई० पू० ) में उत्तरकाण्ड की अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है । दिङ्नाग कुन्दमाला नाटक के अपने नाटक में इस बात का उल्लेख किया है कि
सोता के निर्वासन तक रामायण की रचना की है । श्रानन्दवर्धन
१ कुन्दमाला, अंक ६. १४ ।
रचयिता हैं । उन्होंने वाल्मीकि ने राम के