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ऐतिहासिक महाकाव्य
परित दिए गए हैं। (२) वाल्मीकि राम को मनुष्य के रूप में मानते हैं । जब कृष्ण अवतार के रूप में माने जाने लगे तो राम को भी अवतार के रूप में स्थापित करने का प्रयत्न किया गया। इसके लिए राम को अवतार बताने वाले श्लोक भी इसमें सम्मिलित किए गए । ऐसे श्लोक बालकाण्ड के पूर्वार्ध और उत्तरकाण्ड में ही मिलते हैं, जो कि बाद में सम्मिलित किए गए हैं। (३) वाल्मीकि ने प्रथम श्लोक असह्य दुःख के आवेग में बनाया था। ब्रह्मा ने आदेश दिया था कि उसी आदर्श पर रामायण की रचना करो । प्रथम श्लोक अनुष्टुप छन्द में है। अतः वाल्मीकि ने संपूर्ण रामायण अनुष्टुप छन्द में ही लिखा होगा । बाद में जब महाकाव्य के लक्षणों में यह भी निर्धारित किया गया कि उसके प्रत्येक सर्ग का अन्तिम श्लोक सर्ग में प्रयुक्त छन्द की अपेक्षा अन्य छन्द में हो, तब उस समय के विद्वानों ने रामायण को भी महाकाव्य नाम देने को इच्छा को होगी। इसके लिए कतिपय सगं और श्लोक विभिन्न छन्दों में बनाए गए होंगे । बाद में ये ही श्लोक रामायण में यथास्थान जोड़ दिए गए होंगे । तब इसका नाम महाकाव्य पड़ा । वाल्मीकि ने अनुष्टुप छन्द वाले हो श्लोक बनाये हैं; अतः जो अंश ऊपर उल्लेख किए गए हैं, वे वाल्मीकि के बनाए हुए नहीं हैं ।
आलोचकों का यह विचार विचारणीय है । बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड में जो कथाएँ हैं वे अधिकतर अपने उचित स्थान पर हैं। बालकाण्ड में जो कथाएं हैं वे घटनाओं का वास्तविक रूप चित्रित करती हैं। इनमें से अधिक कथाएं राम और लक्ष्मण को सुनाई गई हैं । ये कथाएँ इस प्रकरण में विशेष लक्ष्य की पूर्ति करती हैं। कोई भी कथा केवल जोड़ने की दृष्टि से नहीं रखी गई है । विश्वामित्र, रावण, हनुमान आदि की कथाएँ अपने उचित स्थान पर हैं। ये कथाएँ जिन व्यक्तियों से संबद्ध हैं, उनका इस महाकाव्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है । वाल्मीकि ने मुख्य भाग में इनका जीवनचरित नहीं लिखा है। इन कथाओं के बिना यह महाकव्य पूर्ण नहीं माना जा सकता था। रामायण के मुख्य अंश तथा इन कथाओं की निष्पक्ष विवेचना से ज्ञात