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संस्कृत साहित्य का इतिहास
पाश्चात्त्य आलोचकों तथा उनके अनुगामी कतिपय भारतीयों का विचार है कि वाल्मीकि ने बालकाण्ड के उत्तरार्ध या केवल अन्तिम भाग से लेकर युद्धकाण्ड के अन्त तक रामायण को रचना की है । रामायण का शेष भाग बाद के किसी अन्य लेखक ने लिखा है और उसको वाल्मीकि के मल ग्रंथ से मिला दिया है । इस निर्णय के निम्नलिखित आधार हैं :--
१--वर्तमान रामायण में ऋष्यश्रृङ्ग, विश्वामित्र, अहल्या, रावण, हनुमान गंगावतरण आदि की कथाएँ प्राप्त होती हैं। इन कथाओं का मुख्य कथा से साक्षात् कोई सम्बन्ध नहीं है । ये कथाएँ बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड के पूर्वार्ध में प्राप्त होती हैं। इस प्रकार की कहानियाँ इन काण्डों के अतिरिक्त अन्य काण्डों में नहीं प्राप्त होती हैं । इन कथाओं का लेखक वाल्मीकि के अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति होना चाहिए, क्योंकि वाल्मीकि राम की कथा लिखते हुए ग्रन्थ के मुख्य भाग में इनको स्थान न देते । अतएव रामायण के वे भाग जिनमें ये कथाएँ हैं, अन्य किसी लेखक की रचना है।
२---बालकाण्ड में दो विषय-सूचियाँ हैं, एक नारद द्वारा वर्णित राम का जीवन और दूसरी विषय सूची किसी अन्य के द्वारा लिखित सर्ग ३ अन्त में है। नारद वाली विषय-सूची संक्षेप-रामायण नाम से प्रसिद्ध है । इसमें उत्तरकाण्ड की विषय-सूची सम्मिलित नहीं है । दूसरी सूची में उत्तरकाण्ड का उल्लेख है । नारद की विषय-सूची के आधार पर वाल्मीकि ने यद्धकाण्ड के अन्त तक रचना की होगी। दूसरी विषयसूची किसी अन्य लेखक ने जोड़ी है। उसने संक्षेपरामायण में उत्तरकाण्ड का उल्लेख न पाकर पूरे रामायण की विषय-सूची तैयार की है। इन दोनों विषय-सूचियों से ज्ञात होता है कि वाल्मीकि ने कितना अंश लिखा है । युद्धकाण्ड के स्तुति-श्लोक भी इसी बात की पुष्टि करते हैं ।
इस प्रकार यह सिद्ध करके कि वाल्मीकि ने पूरी रामायण नहीं लिखी है, पालोचकों ने इन प्रक्षेपों का उद्देश्य भी बताया है। (१) उनका लक्ष्य था कि जिस प्रकार महाभारत में कथाएँ हैं, उसी प्रकार रामायण में भी ऋष्यश्रृङ्ग आदि की कथाएँ होनी चाहिए । उत्तरकाण्ड में रामायण के पात्रों के जीवन