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ऐतिहासिक महाकाव्य
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प्रभावित थे । एक दिन वे अपने आश्रम पर आए हुए नारद ऋषि से मिले और उनसे एक आदर्श पुरुष का जीवनचरित पूछा । उत्तर में नारद ने राम के जोवन का वर्णन किया। यह ज्ञात होता है कि इसके द्वारा वाल्मीकि राम के जीवन के विषय में प्रामाणिक और निश्चित विवरण ज्ञात करना चाहते थे । नारद से मिलने के बाद उनका ध्यान राम की ओर ही केन्द्रित हो गया था और वे इसी अवस्था में अपने आश्रम के समीप बहने वाली तमसा नदी पर पूजा के लिए गए । मार्ग में उन्होंने देखा कि एक व्याध ने क्रौंच पक्षी को मार दिया है । कौंची अपने पति एवं प्रिय के वियोग में बहुत दुःखित होकर रो रही थी। यह देखकर वाल्मीकि ऋषि का हृदय द्रवित हो गया और उन्होंने व्याध को शाप दिया कि वह बहुत काल तक दुखी रहे । उनका यह शाप पद्य रूप में परिणत होकर प्रकट हुआ, जो कि निम्न रूप
में है :
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती: समाः । यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥
रामायण, बालकाण्ड २-१५ वे पूजा करके अपने आश्रम को लौटे । तत्पश्चात् ब्रह्मा उनके सामने आए । उन्होंने आशीर्वाद दिया और आदेश भी दिया कि वे राम का चरित शाप वाले पद्य के अनुसार पद्यों में लिखें । उन्होंने वाल्मीकि को शक्ति प्रदान को कि राम के वर्तमान, भूत और भविष्यत् जीवन को साक्षात् देख सकेंगे। ब्रह्मा के जाने के पश्चात् वाल्मीकि ने काव्य को रचना प्रारंभ की, जिसको रामायण नाम से पुकारा गया । यह रामायण सात काण्डों में विभक्त है :-- बाल, अयोध्या, अरण्य, किष्किन्धा, सुन्दर, युद्ध और उत्तरकांड । उन्होंने अपने आश्रम में निवास करने वाली सीता के पुत्र कुश और लव को रामायण पढ़ाई, जो उस समय उनके आश्रम में अपनी माता सीता के साथ रहते थे । अश्वमेध यज्ञ के समय राम को उपस्थिति में कुश और लव ने रामायण का गान किया था।