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ऐतिहासिक महाकाव्य
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अतः इतिहास को प्राचीन घटनाओं का संकलन समझना चाहिए । अतएव इनकी कथाएँ काल्पनिक गाथाएँ नहीं मानी जा सकती हैं, जैसा कि पाश्चात्त्य विद्वान् मानते हैं ।
भारतीय परम्परा के अनुसार वेद शाश्वत माने जाते हैं या वे सृष्टि के प्रारम्भ में परमात्मा के द्वारा उपदिष्ट माने जाते हैं । वैदिक ऋषियों ने वेदार्थ की पुष्टि के लिए कुछ उपाख्यान रचे होंगे। ये उपाख्यान हो इतिहास, आख्यान और उपाख्यान कहे गए । ऐसे उपाख्यानों आदि की संख्या बहुत रही होगी । इनमें से अधिकांश रामायण, महाभारत और पुराणों में सम्मिलित किए गए । तत्पश्चात् र मायण और महाभारत इतिहास कहे गए । इनमें बहुत सा इतिहास भरा हुआ है । अतएव ऐतिहासिक महाकाव्यों का समय बहुत प्राचीन समय से मानना चाहिए ।
ये महाकाव्य लौकिक भावों से युक्त होने पर भी ऐतिहासिक वातावरण में उत्पन्न हुए हैं । ये वैदिक यज्ञादि के अवसर पर गाए जाते थे । वैदिक देवता सविता, अग्नि, इन्द्र इत्यादि का, जिनका वैदिक साहित्य में मख्य स्थान था, इन महाकाव्यों में गौण स्थान हो गया है। इनमें भी इन्द्र देवों का राजा है । ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र इन महाकाव्यों में मुख्य है । कुबेर, गणेश, कात्तिकेय, लक्ष्मी, पार्वती, नाग देवता तथा अन्य देवता का, जिनका वैदिक काल में गौण स्थान था, इन महाकाव्यों में मुख्य हैं । साहित्य का स्वरूप बदल गया है । वैदिक काल में ऋग्वेद संहिता छन्दों में है तथा अन्य गद्य में हैं । ऐतिहासिक महाकाव्य पद्य में ही हैं । आशावाद का भाव, जो
१. देखो रामायण ६-१२०-३२ । महाभारत-उद्योग० ३६-१३३ ।
द्रोण० ५२। शान्ति० १०३, १०४, १११ । अनुशासन० ५० ।