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वेदाङ्ग
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हुई । ऐसा ज्ञात होता है कि चान्द्र गणना को विशेष महत्त्व दिया गया था । ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों में सौर और चान्द्र दोनों प्रकार की गणना प्राप्त होती है और मलमास की भी गणना प्राप्त होती है । एक अज्ञात लेखक का ज्योतिषवेदांग नामक ग्रंथ प्राप्त हुआ है। इसमें ४३ श्लोक यजुर्वेद से संबद्ध हैं और ३६ श्लोक ऋग्वेद से संबद्ध हैं। ___ कल्पसूत्रों की उत्पत्ति वेदों के ब्राह्मण ग्रन्थों से हुई है । कल्प का अर्थ है कि इसके द्वारा यज्ञ के प्रयोगों का समर्थन किया जाता है । कल्प्यते समर्थते यागप्रयोगोऽत्र इति व्युत्पत्तेः । (सायण के ऋग्वेदभाष्य की भूमिका) इस विषय से सम्बद्ध ग्रन्थ सूत्ररूप में हैं । इन सूत्रों का अर्थ व्याख्याओं के द्वारा ही समझा जा सकता है । ब्राह्मण ग्रन्थों में जो लम्बे और क्लिष्ट विवरण दिए गए हैं, वे यज्ञों के समय पूर्णरूप से स्मरण नहीं रह सकते थे । अत: इसके लिए सूत्ररूप को अपनाया गया ।
इस विषय को स्थूल रूप से चार भागों में बाँटा जाता है--ौत, गह्य, धर्म और शुल्व । श्रीत सूत्रों में दक्षिण, पाहवनीय और गार्हपत्य इन तीन अग्नियों की पूजा और दर्शपूर्णमास सोम, आदि यज्ञों के करने का वर्णन किया गया है । गह्य सूत्रों में गर्भाधान से लेकर अन्त्येष्टि तक समस्त संस्कारों का वर्णन किया गया है । साथ ही समाज में प्रचलित प्रथाओं आदि का भी वर्णन है । मुख्य संस्कारों में ये हैं--जातकर्म (पुत्रोत्पत्ति के समय के कार्य), उपनयन और वेदारम्भ संस्कार, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य इन तीनों वर्गों के ब्रह्मचर्य और गहस्थ समय के कर्तव्य आदि, गुरु और शिष्य के कर्तव्य, विवाह-संस्कार, दैनिक किये जाने वाले पंचयज्ञ,' गृह-निर्माण, पशुपालन, रोगनाशक विधियाँ,
१. पंच यज्ञ ये हैं--१--ब्रह्मयज्ञ, वेदों का अध्ययन और अध्यापन २--पितृयज्ञ, पितरों की पूजा ३--देवयज्ञ, देवों की पूजा, यज्ञ आदि ४-- भूतयज्ञ, सभी प्राणियों को अन्नादि देना ५--नृयज्ञ, अतिथियों की पूजा ।
अध्यापनं ब्रह्मयज्ञः पितृयज्ञस्तु तर्पणम् । होमो देवो, बलिभी तो, नृयज्ञोऽतिथिपूजनम् ।। मनुस्मृति ३-७०