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संस्कृत साहित्य का इतिहास के लिए लिखा है । इन वैयाकरणों ने जो कार्य किया है, वह बहुत उच्च कोटि का है । मैकडानल का कथन है--"भारतीय वैयाकरणों ने ही विश्व में सर्वप्रथम शब्दों का विवेचन किया है, प्रकृति और प्रत्यय का अन्तर पहचाना है, प्रत्ययों के कार्य का निर्धारण किया है, सब प्रकार से परिपूर्ण और अति विशुद्ध व्याकरण-पद्धति को जन्म दिया है, जिसकी तुलना विश्व के किसी देश में प्राप्य नहीं है।"१
छन्द का सम्बन्ध वृत्त से है । वैदिक मन्त्रों में प्रयुक्त छन्दों के विषय में इसमें नियम दिये हुए हैं। निदानसूत्रों में वैदिक छन्दों के नाम और उनके लक्षण दिए हुए हैं। इसमें १० अध्याय हैं । इसमें अन्त में वैदिक मन्त्रों में प्रयुक्त छन्दों की अनुक्रमणिका दी हुई है । पिंगल का छन्दःसूत्र यद्यपि प्राचीन है, परन्तु उसमें वैदिक छन्दों का वर्णन नहीं है ।
निरुक्त में वेदों की व्याख्या के प्रथम प्रयास का उल्लेख है। सबसे प्राचीन निरुक्त यास्क (८०० ई० पू० से पूर्व) का ही प्राप्य है । उसने अपने पूर्ववर्ती १७ निरुक्तकारों का उल्लेख किया है, परन्तु उनके ग्रन्थ उसको भी उपलब्ध नहीं हुए थे। इसमें वेदों से व्याख्या के लिए जिन शब्दों का संग्रह किया गया है, वे तीन भागों में विभक्त होते हैं--१. नैघण्टुककाण्ड, इसमें पर्यायवाची शब्दों की सूची दी गई है । २. नैगमकाण्ड या ऐकपदिक, इसमें वेद के कठिन और अस्पष्टार्थक शब्दों का संग्रह है। दैवतकाण्ड. इसमें पृथ्वी, आकाश और धुलोक के देवताओं के नाम की सूची दी गई है। यास्क को अपने पूर्व विद्यमान वैदिक शब्दों की एक सूची उपलब्ध हुई थी, जिसे निघण्टु कहते हैं । यास्क ने उस पर निरुक्त नाम की टीका की है।
यज्ञों की विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ज्योतिष का जन्म हया। सूर्य, चन्द्रमा तथा अन्य ग्रहों और नक्षत्रों की गति का निरीक्षण करना पड़ता था । उनकी गति के आधार पर शुभ मुहूर्त पर यज्ञों का समय निर्धारित किया जाता था। इस आवश्यकता की पूर्ति के लिए उनकी गति की गणना आवश्यक
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India's Past by A. A, Macdonell. पृष्ठ १३६