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________________ अध्याय ७ वेदाङ्ग वेदों के अध्ययन, उनका अर्थ ठीक जानने और उनकी ठीक व्याख्या करने के लिए तथा यज्ञादि के समय उनका ठीक विनियोग के लिए वेद के सहायक ग्रन्थों की आवश्यकता हुई । इनको वेदाङ्ग कहते हैं । ये ६ हैं -- १. शिक्षा (ध्वनिविज्ञान), २. व्याकरण, ३. छन्द, ४. निरुक्त ( वेदों की निर्वचनात्मक व्याख्या), ५. ज्योतिष ६. कल्प ( कर्मकाण्ड की विधि ) । शिक्षा व्याकरणं छन्दो निरूक्तं ज्योतिषं तथा । कल्पश्चेति षडङ्गानि वेदस्याहुर्मनीषिणः ॥ ये विभिन्न ग्रन्थ नहीं हैं । ये केवल ६ विषयों का उल्लेख करते हैं, जिनके ज्ञान से वेदों के मन्त्रों का अर्थज्ञान तथा वैदिक परम्परा का ज्ञान होता है और मन्त्रों का उचित विनियोग ज्ञात होता है । शिक्षा और छन्द वेदों के 1 - अध्ययन और पाठ में सहायक होते हैं । व्याकरण और निरुक्त उनके अर्थज्ञान में सहायक हैं । ज्योतिष और कल्प वेदों के द्वारा प्राप्त ज्ञान को क्रियात्मक रूप देने में सहायक होते हैं । इन वेदांगों की उत्पत्ति वैदिक ग्रन्थों में ही प्राप्त होती है । मुख्यरूप से ब्राह्मण ग्रन्थों में इनकी उत्पत्ति दिखाई पड़ती है । शिक्षा का वैदिक संहिताओं से घनिष्ठ सम्बन्ध है । इसमें वैदिक संहिताओं के शुद्ध उच्चारण और उनके स्वर-संचार के लिए नियम दिए हुए हैं । इस विषय का विशेष रूप से वर्णन प्रातिशाख्य ग्रन्थों में है । जैसा कि इनके नाम से प्रकट होता है कि ये वेद की विभिन्न शाखाओं के साथ संबद्ध हैं । ये सूत्रों के रूप में लिखे हुए हैं । विभिन्न वेदों के ये प्रातिशाख्य ग्रन्थ हैं-- ऋग्वेद की शाकल शाखा का शौनकरचि? ऋक्प्रातिशाख्य है, शुक्ल यजुर्वेद की माध्यन्दिन -शाखा का कात्यायन-रचित वाजसनेयी प्रातिशाख्यसूत्र है, कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तरीय शाखा का तैत्तिरीय प्रातिशाख्य-सूत्र है । सामवेद के सामप्रातिशाख्य, ૪૪
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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