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उपनिषद्
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जैसे -- ऋग्वेद के साथ १०, शुक्ल यजुर्वेद के साथ १६, कृष्ण यजुर्वेद के साथ ३२, सामवेद के साथ १६ और प्रथर्ववेद के साथ ३१ उपनिषदें सम्बद्ध हैं ।
उपनिषदों के विषय अध्ययन से प्रकट होता है कि कुछ बातों में किसी एक वेद से सम्बद्ध होने के अतिरिक्त उनमें ऐसी कोई विशेष बात प्रकट नहीं होती कि उनका सम्बन्ध किसी एक वेद से ही माना जाए। उनके विषय और वर्णन की पद्धति में ऐसी बात नहीं है कि किसी एक वेद के अनुयायी ही उनमें वर्णित शिक्षाओं को मानें, अन्य नहीं । उनके वर्णन सभी वेदानुयायियों के लिए समानरूप से मान्य हैं । वेदान्त के विभिन्न सम्प्रदायों के मानने वाले इन उपनिषदों को अपने मत के समर्थन के लिए प्रामाणिक ग्रन्थ मानते हैं । वेदों का यह ज्ञानकाण्ड वेदों के कर्मकाण्ड भाग से सर्वथा पृथक् है । इ सभी मतों के अनुयायी अपने मत के समर्थन के लिए केवल सूचनाएँ ही नहीं प्राप्त करते हैं, अपितु सभी मतों के अनुयायी इनको समान रूप से प्रमाण मानते हैं । उपनिषदों के किसी भी उद्धरण को इस आधार पर कोई अमान्य नहीं कह सकता है कि यह किसी विशेष मत की उपनिषद् का उद्धरण है । इन उपनिषदों की आधारशिला पर ही भारतवर्ष के विभिन्न दार्शनिक मत स्थिर हैं ।