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________________ ३८ संस्कृत साहित्य का इतिहास ग्रन्थ स्वतन्त्र ग्रन्थ हैं । तैत्तिरीय और शतपथ ब्राह्मणों में स्वर-चिह्न हैं, अन्यों में स्वर-चिह्न नहीं हैं । आरण्यक ग्रन्थ ऋग्वेद के दो आरण्यक - ग्रन्थ हैं -- १. ऐतरेयाण्यक, इसमें १८ अध्याय हैं । इसके लेखक श्राश्वलायन हैं । २. कौषीतक्यारण्यक, इसमें १५ अध्याय हैं । शतपथ ब्राह्मण के १४ वें काण्ड का प्रारम्भिक भाग शुक्ल यजुर्वेद का आरण्यक है । तैत्तिरीयारण्यक तैत्तिरीय ब्राह्मण का ही संलग्न भाग है । इसमें स्वर-चिह्न हैं। यह कृष्ण यजुर्वेद की तैत्तिरीय शाखा का आरण्यक है । छान्दोग्य उपनिषद् का प्रथम अध्याय सामवेद की ताण्ड्य शाखा का प्रारण्यक समझना चाहिये। तलवकार शाखा का उपनिषद् ब्राह्मण इस शाखा का आरण्यक ही समझना चाहिए । अथर्ववेद का कोई आरण्यक नहीं है । वेदों के ये तीनों भाग अर्थात् वेद, ब्राह्मण और आरण्यक कर्मकाण्ड का प्रतिनिधित्व करते हैं । इन तीनों भागों में जो साहित्य है, वह कर्मकाण्ड की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा गया है, अर्थात् मन्त्र, विधि और अर्थवाद । मन्त्र भाग में यह वर्णन किया जाता है कि किस यज्ञ में कौन से मन्त्रों का पाठ होगा । विधि भाग में यह वर्णन किया जाता है कि किस प्रकार कौन सा यज्ञ करना चाहिये, उसमें कौन से कार्य करने चाहिएँ और कौन से नहीं करने चाहिएँ । अर्थवाद भाग में वेदों के उन स्थलों का उल्लेख होता है जो विधिभाग के निर्देशों का स्पष्टीकरण करते हैं और साथ ही इस भाग में उन कार्यों के करने का उद्देश्य और लाभ आदि का वर्णन किया जाता है । उपर्युक्त विभाजन से यह ज्ञात है कि वेदों का संहिता भाग मन्त्र भाग है । ब्राह्मण ग्रन्थ विधि भाग हैं और आरण्यक - ग्रन्थ अर्थवाद भाग हैं । पाश्चात्य विद्वान् वेदों के संपूर्ण कर्मकाण्ड- साहित्य को रचना - कालक्रम की दृष्टि से निम्नलिखित रूप से स्थान देते हैं - ऋग्वेद संहिता, यजुर्वेद संहिता, पंचविंश ब्राह्मण, तैत्तिरीय ब्राह्मण, जैमिनीय ब्राह्मण, कौषीतकि ब्राह्मण, ऐतरेय ब्राह्मण, शतपथ ब्राह्मण और गोपथ ब्राह्मण ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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