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संस्कृत साहित्य का इतिहास
ब्राह्मण-ग्रन्थ
ब्राह्मण ग्रन्थों में कर्मकाण्ड के विभिन्न मुख्य प्रश्नों पर वैदिक विद्वानों ने जो अपने विचार प्रकट किए हैं, उनका संकलन है । कर्मकाण्डों की विभिन्नता के अनुसार उन पर प्रगट किए गए विचारों में विभिन्नता है और तदनुसार ही विभिन्न ब्राह्मण-ग्रन्थ हैं । ये विवरण ही बताते हैं कि किस यज्ञ में किस मन्त्र का विनियोग है तथा मन्त्रों और यज्ञों में परस्पर क्या सम्बन्ध है । इनमें यज्ञ की विधि के सम्बन्ध में बहुत विस्तार और सूक्ष्मता के साथ निर्देश दिए गए हैं, जैसे -- यज्ञवेदी के किस ओर कौन पुरोहित बैठे, कुशा किस स्थान पर रक्खी जाए, इत्यादि । इन विवरणों और निर्देशों के समर्थन में वे कतिपय कथाओं का उल्लेख करते हैं । प्रत्येक यज्ञ के लिए चार पुरोहितों की प्रावश्यकता होती है - - होता, उद्गाता, अध्वर्यु और ब्रह्मा । इन पुरोहितों का क्रमशः ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद से संबंध है । इनमें से अध्वर्यु वस्तुतः यज्ञ करता है । होता उच्च और स्पष्ट स्वर में बहुत शुद्धता के साथ ऋग्वेद के मन्त्रों का पाठ करता है । उद्गाता गान के नियमों के अनुसार सामवेद के मन्त्रों का गान करता है । ब्रह्मा का कार्य यह है कि वह अन्य पुरोहितों के कार्यों का निरीक्षण करे और जहाँ पर कोई त्रुटि हो, उसे ठीक करे । ब्रह्मा के लिए आवश्यक है कि वह चारों वेदों का पूर्ण ज्ञाता हो और वैदिक यज्ञों का पूर्ण विवरण विस्तार के साथ जानता हो ।
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जिस प्रकार वेदों की विभिन्न शाखाएँ हैं, उस प्रकार ब्राह्मण ग्रन्थों की विभिन्न शाखाएँ नहीं हैं । वेदों की शाखाओं और यज्ञों की विभिन्नता के अनुसार ब्राह्मण ग्रन्थ कई हैं ।
ऋग्वेद के दो ब्राह्मण ग्रन्थ हैं - १. ऐतरेय ब्राह्मण, इसमें ४० अध्याय हैं, २. कौषीतकि ब्राह्मण, इसका दूसरा नाम शांख्यायन ब्राह्मण है । इसमें ३० अध्याय हैं । शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ ब्राह्मण है । इसकी दो शाखाएँ हैं- --काण्व और माध्यन्दिन । इसमें १४ काण्ड और १०० अध्याय हैं । शतपथ ब्राह्मण के प्रारम्भिक & काण्डों में शुक्ल यजुर्वेद के प्रारम्भिक १८