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संस्कृत साहित्य का इतिहास ई० के लगभग माना जाता है । सुदर्शनसूरि १३वीं शताब्दी ई० के उत्तरार्ध में हुए थे।
श्रीवत्सांक के पुत्र पराशर भट्ट ( लगभग ११०० ई० ) ने खण्डनात्मक तत्त्वरत्नाकर ग्रन्थ लिखा है । वह अब नष्ट हो गया है । उसने विष्णुसहस्रनाम की टीका भगवदगणदर्पण नाम से की है । मेघनादारि का नयद्यमणि विशिष्टाद्वैत मत का एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। वरदनारायण भट्टारक का प्रज्ञापरित्राण भी एक स्वतन्त्र ग्रन्थ है। वरदाचार्य ( लगभग १२७० ई० ) ने चार छोटे किन्तु महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं--(१) प्रपन्नपारिजात, (२) प्रमेयमाला, (३) तत्त्वनिर्णय, (४) तत्त्वसार । श्रुतप्रकाशिका के लेखक सुदर्शनसूरि ने दो और ग्रन्थ लिखे हैं--(१) रामानुज के वेदार्थसंग्रह को टीका तात्पर्यदीपिका और (२) भागवत की टीका शुकपक्षीय । वेदान्तदेशिक के गुरु प्रात्रेय रामानुज का जन्म १३वीं शताब्दी ई० के उत्तरार्ध में हुआ था। उसने विशिष्टाद्वैत के समर्थन में न्यायकुलिश ग्रन्थ लिखा है । __ वेदान्तदेशिक ने लगभग ११८ ग्रन्थ लिखे हैं। उनमें से लगभग १५ नष्ट हो गए हैं। इनमें से ४० से अधिक तामिल भाषा में हैं और ३५ के लगभग काव्य, गीतिकाव्य और कर्मकाण्ड आदि विषयों पर हैं। इनमें से प्रमुख स्वतन्त्र ग्रन्थ ये हैं--(१) तत्त्वमुक्ताकलाप तथा उस पर अपनी टीका सर्वार्थसिद्धि (२) शतदूषणी । यह अद्वैतवाद की आलोचना है । (३) सच्चरित्ररक्षा, (४) निक्षेप-रक्षा, (५) पाञ्चरात्ररक्षा, (६) न्यायपरिशुद्धि (७) न्यायसिद्धाञ्जन, (८) मीमांसा-पादुका और (8) अधिकरणसारावलि । उसके मुख्य टीका ग्रन्थ ये हैं--(१) आस्तिकवाद के समर्थन में मीमांसासूत्रों को टीका सेश्वरमीमांसा, (२) रामानुज के भगवद्-गीताभाष्य की टीका तात्पर्यचन्द्रिका, (३) श्रीभाष्य को टीका तत्त्वटीका, (४) ईशा-वास्योपनिषद्भाष्य, (५) यामन के गीतार्थसंग्रह की टीका गीतार्यसंग्रहरक्षा और (६) रामानुज के गद्यत्रय की टीका रहस्यरक्षा । इन ग्रन्थों में उनकी वैज्ञानिक विषयों के विवेचन में मौलिकता और प्रखर तार्किकता का पग्जिान