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आस्तिक दर्शन और धार्मिक दर्शन
इस मत के सबसे प्राचीन लेखक टंक ( इनका दूसरा नाम ब्रह्मनन्दी है ), द्रमिड और गुहदेव आदि हैं । ब्रह्मसूत्रों पर वृत्तिकार उपवर्ष भी, जिनका दूसरा नाम बोवायन है, इस मत के प्रामाणिक आचार्य माने जाते हैं । इन लेखकों के विषय में विशेष कुछ भी ज्ञात नहीं है । इनके पश्चात् आलवार आते हैं । उनके पश्चात् नाथमुनि ( ८२४ - ९२४ ई० ) आते हैं । उनका पूरा नाम निथा उन्होंने इस मत के प्रतिपादक दो ग्रन्थ लिखे - न्यायतत्त्व और योगरहस्य | ये ग्रन्थ नष्ट हो गए हैं । परकालीन लेखकों ने इन ग्रन्थों से, उद्धरण दिए हैं। उनसे इन ग्रन्थों का ज्ञान होता है । उनका पौत्र यामुन था । उसका जन्म ९१६ ई० में हुआ था । उसने ये ग्रन्थ लिखे हैं -- (१) स्तोत्ररत्न, (२) चतुश्श्लोकी, (३) श्रागमप्रामाण्य -- - इसमें उसने पांचरात्र आगमों की प्रामाणिकता का मण्डन किया है । (४) सिद्धित्रय - इसमें तीन ग्रन्थ हैं - आत्मसिद्धि, ईश्वरसिद्धि और संवित्सिद्धि ( ५ ) गीतार्थसंग्रह — और (६) महापुरुषनिर्णय ।
रामानुज का जन्म १०३७ ई० में कांची के समीप श्रीपेरुम्बुदुर में हुआ या । उन्होंने कांची में यादवप्रकाश से अद्वैतवेदान्त का अध्ययन किया । बाद में वे यामुन के एक शिष्य श्रीपूर्ण के शिष्य हुए । उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और देव भर में विशिष्टाद्वैत मत का प्रचार प्रारम्भ किया । उन्होंने ये ग्रन्थ लिखे हैं -- (१) ब्रह्मसूत्रों की टीका श्रीभाष्य, (२) वेदान्तसार, (३) वेदान्तदीप, ( ४ ) भगवद्गीताभाष्य, (५) वेदार्थसंग्रह, इसमें संक्षेप में वेदों का अभिप्राय' वर्णन किया गया है, (६) गद्यत्रय और (७) नित्य । इसमें ईश्वर-पूजा की विधि का वर्णन है । वेदान्तसार और वेदान्तदीप ये ब्रह्मसूत्रों की संक्षिप्त टीकाएँ हैं । श्रीभाष्य की ये टीकाएँ हुई हैं - मेघनादारिकृत नवप्रकाशिका और भाष्यभावबोधन, (२) वरनारायण भट्टारक कृत न्यायसुदर्शन, (३) सुदर्शन - सूरिकृत श्रुतप्रकाशिका और श्रुतप्रदीपिका, (४) वेदान्तदेशिक ( १२६८ -- १३६६ ) कृत तत्त्वटीका और (५) रंगरामानुज मुनि ( लगभग १६०० ई० ) कृत मूलभावप्रकाशिका । वरदनारायण भट्टारक और मेघनादारि का समय १२००