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संस्कृत साहित्य का इतिहास
पूजा की विधि, दैनिक पंच-कर्तव्यों को करना और तदनुसार उपाधि प्राप्त करना । दैनिक पंच-कर्तव्य ये हैं--(१) अभिगमन अर्थात् देव-मन्दिर में जाना
और वहाँ पर मन, वचन तथा कर्म से ईश्वर की अोर एकाग्रता, (२) उपादान अर्थात् देव-पूजा के लिए सामान एकत्र करना, (३) इज्या अर्थात् ईश्वर-पूजा, (४) स्वाध्याय अर्थात् वेदों का पठन या वैदिक मन्त्रों का उच्चारण और ( ५ ) योग अर्थात् ईश्वर-चिन्तन । दैनिक कर्तव्यों को करते हुए भी नैतिक तथा धार्मिक नियमों का पालन करना आवश्यक है । इस मत के लिए पांचरात्र आगम वेदों के समान ही प्रामाणिक है। इस मत के वनख
आचार्यों ने यह सिद्ध किया है कि वैष्णव आगमों की शिक्षाएँ वेदों की शिक्षा के विपरीत नहीं है । विष्ण के एक अवतार अनिरुद्ध ने इन सिद्धान्तों की सर्वप्रथम शिक्षा दी थी और वे शिक्षाएँ नारद, सनफ और शाण्डिल्य आदि को प्रकट की गई थीं । अतएव वैष्णव आगमों को 'भगवच्छास्त्र' कहा जाता है । महाभारत के नारायणीय अध्याय में पांचरात्र आगमों की प्रामाणिकता सिद्ध की गई है। इन सिद्धान्तों के आधार-ग्रन्थ भगवद्गीता, भागवत, नारदसूत्र और शाण्डिल्य सूत्र हैं। पांचरात्रों के तुल्य वैखानस आगम भी प्रामाणिक हैं। इन आगमों का वैखानस नाम इसलिए पड़ा कि विखनस् अर्थात् ब्रह्मा ने इनका उपदेश अत्रि, मरीचि, काश्यप और भृगु को दिया और इन चारों में से प्रत्यक ने इन सिद्धन्तों को पृथक-पृथक् ग्रन्थ के रूप में प्रगट किया है। इनमें से प्रत्येक को संहिता कहा जाता है जैसे अत्रिसंहिता। यह माना जाता है कि पांचरात्र आगम की १०८ संहिताएँ थीं। आजकल इनमें से कुछ ही संहिताएँ प्राप्त हैं । इनमें पौष्कर, सात्वत और जयाश्य संहिताएँ मुख्य हैं । इनसे ही सम्बद्ध ईश्वर, पादा और पारमेश्वर अादि संहिताएँ हैं ।
इन ग्रन्थों के अतिरिक्त यह मत 'दिव्यप्रबन्ध' को भी प्रामाणिक ग्रन्थ मानता है । ये ग्रन्य तमिल भाषा में ४ सहस्र श्लोकों से युक्त हैं । ये जय विशुद्धाद्वैत मत के प्रतिपादक माने जाते हैं । ये ग्रन्थ प्राजवार नामक सन्तों की रचनाएँ हैं । ये ग्रन्थ वेदों के तुल्य ही प्रामाणिक माने जाते हैं।