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पाश्चात्य विद्वानों के विचारों की समीक्षा
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किए जाने वाले ), काम्य ( किसी विशेष कामना से किए जाने वाले ) और निषिद्ध ( वजित कार्य ) । उपनिषदों में प्रकृति, जीव और परमात्मा के स्वरूप तथा उनके पारस्परिक सम्बन्ध का वर्णन है । ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषदों के लक्ष्य और उद्देश्य के विषय में पाश्चात्य विद्वानों की जो सम्मति है, वही भारतीयों की भी है।
प्राचीन आर्यों ने धर्म के विषय में जो उच्च कार्य किए हैं, उनका संकलन वेदों में है । भारतवर्ष में जीवन के धार्मिक और लौकिक अंशों को पृथक् नहीं किया गया था । वेद पूर्णतया धार्मिक भावना से लिखे गये हैं, अतः उनमें भी कुछ लौकिक विषय आ गए हैं । अतएव भारतीय विचारों के अनुसार वेदों को आदिनिवासियों के लौकिक जीवन-वृत्त का आधार नहीं माना जा सकता है। ___ वेदों के कर्तृत्व के विषय में हिन्दुत्रों में तीन विचार प्रचलित हैं । प्रथम विचार है कि वेदों का कर्ता कोई व्यक्ति नहीं है। सष्टि के आदि में मनुष्यमात्र के हित के लिए परमात्मा ने उनका प्रकाश किया। वे किसी व्यक्ति की रचना नहीं हैं, अतः वे स्वतः प्रमाण हैं। यह विचार उपनिषदों के मत को मानने वाले वेदान्तियों का है । दूसरा विचार यह है कि यह संसार न कभी बना है और न कभी नष्ट हुआ है । वेद अनादिकाल से इसी रूप में विद्यमान हैं । वे नित्य और स्वतः प्रमाण ज्ञान के ग्रन्थ हैं । उनकी प्रामाणिकता सर्वोच्च है । यह विचार वेद के कर्मकाण्ड भाग को मानने वाले मीमांसकों का है । तीसरा विचार है कि वेदों का कर्ता परमात्मा है । वे ईश्वरकतक होने के कारण प्रमाण-स्वरूप हैं । यह विचार न्यायशास्त्र को मानने वाले नैयायिकों का है । वेदों में जो विश्वामित्र, गृत्समद, वसिष्ठ आदि नाम कुछ सूक्तों के साथ आए हैं, उनका अभिप्राय यह समझना चाहिए कि ये नाम उन ऋषियों के हैं, जिन्होंने इन सूक्तों का विशेष रूप से प्रतिपादन किया और वेदोक्त धर्म का प्रचार किया । इससे यह स्पष्ट है कि हिन्दू वेदों को किसी व्यक्ति की रचना
१ ऋग्वेद १०-६-६