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नास्तिक-दर्शन
३६३ परन्तु वे सभी अपूर्ण हैं । उनमें से कुछ ये हैं--प्रतिमोक्षसूत्र, विनयपिटक दीर्घागम, मध्यमागम आदि ।
इनके अतिरिक्त कुछ और भी ग्रन्थ हैं, जो कि बौद्धों के लिए प्रामाणिक हैं। उनमें से अधिकांश कथा के रूप में हैं। इस विभाग में जातक, धम्मपद, दीपवंश और अवदान आदि आते हैं । महावस्तु में बहुत से जातक हैं। इसका सम्बन्ध होनयान शाखा से है । ललितविस्तर महायान शाखा का सबसे पवित्र धर्मग्रन्थ है । इसमें बुद्ध का जीवन-चरित दिया हुआ है। इसका दूसरा नाम वैपुल्यसूत्र है । इसका रचनाकाल और लेखक का नाम अनिश्चित है । इसका हवीं शताब्दी में चीनी भाषा में अनुवाद हुआ है । कुमारलात ने सूत्रालंकार ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ का दूसरा नाम कल्पनामण्डितक है। इसमें जातकों और अवदानों का सङ्कलन है । यह ग्रन्थ अपूर्ण है । इसी प्रकार का अन्य ग्रन्थ प्रार्यशूर की जातकमाला है । सद्धर्मपुण्डरीक में महायान शाखा के सिद्धान्तों का वर्णन सूत्रों के रूप में है । इसमें गद्यभाग शुद्ध संस्कृत में है और गाथाएँ (पद्य) प्राकृत में हैं । इसका २२३ ई० में चीनी भाषा में अनुवाद हुआ था । यह ग्रन्थ बुद्ध की भक्ति के विकास में बहुत सहायक हुआ है । प्रज्ञापारमितों में शून्यवाद का वर्णन है। उनमें बोधिसत्त्व की पूर्णता का वर्णन है । प्रज्ञापारमितों में प्रत्येक के कई संस्करण हैं और उनमें सूत्रों की संख्या में अन्तर है । इनमें सूत्रों की संख्या ७०० से १ लाख तक है । अतएव इनके नाम हैं--अष्टसाहस्रिकापारमित और शतसाहस्रिकापारमित प्रादि । लंकावतारसूत्रों में बौद्ध धर्म के आदर्शवाद और शून्यवाद सिद्धान्तों का वर्णन है । सुवर्ण-प्रभास में आश्चर्यकारी विधियों का वर्णन है। समाधिराज में समाधि का वर्णन है। बोधिसत्त्व से बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए जिन १० सोपानों को पार करना होता है, उनका वर्णन दशभूमीश्वर ग्रन्थ में है ।। गण्डव्यूह और तथागतगुह्यक शून्यवाद सिद्धान्त के समर्थक हैं ।
लगभग ईसवीय सन् के प्रारम्भ में बुद्ध को देवता माना जाने लगा। उनका वर्णन तायिन्, भगवा, सुगत तथा सर्वज्ञ के रूप में किया जाने लगा।